पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४२

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रे, बुद्ध के बाद: भी न सममी गयी । नहीं तो नेताओों को फौरन खबर ने हो तती ( धीरेधोरे इन नयी वातों के समाचार फेशे। फोम की'

रफ से सत्ताधिकारियों के पास पन्न गये । डेप्यूटेशन भी'

हुँचे |अधिकारियों की तो यही दलील थीकि हम इस बात को तो बरदाश्त नहीं कर सकते कि चाहे जो आदमी जिस तरह

चाहे, यहाँ घुस आबे | इसलिए तमाम भारतीयों के पास यहाँ” रहने के परवाने एक ही किस्म के होने चाहिएँ और उनमे इतनी बातें लिखी होनी चाहिएँ कि उसके आधार पर केवल उनका!

माल्षिक ही यहाँ आने पावे और कोई नहीं |मैंने सलाह दी किऐसा तो कोई कानून यहाँ हैनहीं जिसके चल पर अग्रेज् ऐसेपरवाने रखने केलिए बाध्य कर सकते हों तथापि अभी जबतक

कि अंग्रेजों और बोअरों केबीच स्थायो सुलह नहीं हो जाती तब" तक तो थेहमसे परवाने जरूर माँग सकते हैं।भारत फे “टिफेंस आफ इस्डिया”? ऐक्ट-भारत रक्षा-विधान जैसा ही कानून

दक्षिण अफ्रीका मेअस्थायी सधि रक्षा केलिए भी बनाया गया था और जिस प्रकार भारत में बह भारत-रक्षा-विधान बहुत ब्यादा समय तक प्रजा-पीड़न के लिए ही कायम रक्खा गया था, ठीक उसी प्रकार, अफ्रीका मेंभी उस संधि-रक्ता-विधान को महज

भारतीयों को सताने के लिए द्वीअधिक समय तक कायम रच्खा था। गोरों पर तो उसका अमल्ञ होता हीन था | अब अगर

यही निश्चित हुआ कि परवाने लेना ही चाहिए तो उनमें उस, मनुष्य की पहचान के लिए भी तो कोई निशानी चाहिए न? , इसलिए यह चराबर है कि जो दस्तखत न कर सकते होंउन्हे. अपने अगूठे की निशानी क्षगानी चाहिए। पुत्षिस बाल्ञों ने एक यह आविष्कार क्या हैकि किसी भी दो आदमियों के अगूठों

की रेखायें कमी एकसी नहीं होतीं। उनके स्वरूप और संख्या