पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४३

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दत्तिण अमरीकाकासत्याग्रह

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का उस लोगों नेवर्गाक्रण भी किया है। इस शाल््र को जानने

चाल्ला वो अगूठों के छाप को तुलना करके एक ही दो मिनट के

अंदर कह सकता हैकि वे दो भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के ६ था

एक ही के । तस्वीरें खींचने देने कीकल्पना मुझे तो जरा भी पसद नहीं थी। और मुसत्ञमानों की दृष्टि सेतोउसमें धामिक

शयाथा भी थी। आखिर हम इस निश्चय पर पहुँचे कि दरएक भारतीय अपने पुराने परवाने लौटाकर नवीन योजना के श्रद्भुत्तार

चनाये परवाने लेलें और नवीन आनेवाले भारतीय नवीन परबाने ही लें। भारतीय इस बात के लिए कानून की दृष्टि से जरा भी वाध्य नहीं किए जासकते थे । किन्तु उन्होंने अपनी

-स्वेच्छापूंक यह करना इसलिए ठोठ सममा कि उनेे सिर पर कोई और आफत न खडी कर दो जाये। दूसरे, वे यह भी सिद्ध फरना चाहते थेकि वे कपटपूर्वेक किसो को चहाँ बुलानां नहीं

चाहते थे। और तीसरे रक्ा-विधान का उपयोग नवीन अनिवा

भारतीयों को सताने के लिए न होने पावे। यह कह्ठा जासर्केतों

हैकि लगभग तमाम भारतीयों ने वे परवाने ले लिए थे। घह

कोई ऐसी वैसी वात न थी। जिस बात के क्षिए कानून मेंकोई सजा न थी उसे यदि कौम ने एकता पूबेंक और शीघ्रता से कर

पदिखाया तो इससे उसकी सच्चाई, व्यवद्वार कुशलदा, दतापतत,

सममदारों और नम्नता ही प्रगट होती थो। अपने इस कार्ये

द्वारा उसने यह भी सिद्ध कर बताया कि ट्रान्सवाल के किसी

कानून का किसी भो प्रकार उल्लंघन करना नहीं चाहती थी।

भारतीयों का खयात्न था कि जो जाति इतने विवेक केसाथ आचरण करती है,उसको सरक्षार भो अवश्य प्यार सेरकखेगो, उसका आदर करेगी और उसे दूसरे हक भी देगी। इस मह्विचैक का बदला ट्रान्सवाल की म्रिठिश सरकार ने किस अकार एदिया यह हम अगल्ते प्रकरण मेंदेख सकेंगे।