पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४४

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विवेक का बदला--खूनी कानून एूखानों मेंउपयुक्तरहोवद्ल्त हुआ तव तक सच १६०६ जग गया था । सन्‌ १६०३ में मैंने फिर द्रान्सबाल

हें प्रवेश किया | इस वर्ष के करीब मध्य में मैंने जोहास्सबर्ग में -झपना आफिस खोला अर्थात्‌ दोसाल एशियाटिक आफिस के आक्रमणों सेबचाव करते ही करते बीत गये। हम सब यही

सोचते थे कि परवानों का झगड़ा तय होते ही सरकार पूरीतरा

सन्‍्तुष्ट दो जायेगी, और कौम को भी कुछ शान्ति प्राप्त होगी! पर इसके नसीब मेंशान्ति थी ही नहीं। मि० ज्ञायनल किस का

परिचय मैं पिछले अध्याय मेंदेचुका हूँ। उन्हें मालूम हुआ

“कि गोरों का हेतु केवल इतनी बात से सिद्ध नहीं होता, कि

भारतीय सिफे नवीन परवाने ले लें। उनकी दृष्टि से यह वात काफी न थी कि ऐसे सहान्‌ कार्य परस्पर स्वेच्छापवंक हो जायेँ। -इन कार्यों केपीछे कानुन काव्ञ भीअवश्य होता चाहिए।

तभी बह शोभा देसकता है, और उनके महत्वपूर्ण अंगों तथा सिद्धान्तों की रक्ता हो सकती है ! मि० कर्टिस का द्देतु यह था रुके भारतीयों को किसी कानूत के द्वारा इस प्रकार जकड़ दिया