पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४५

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दक्षिण श्रफ्ीका का सत्माग्रह

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जाये कि जिसका असर सारे दक्षिण अफ्रीका भर मेंहो भौर दूसरे उपनिवेश भी उसका श्रतुकरण फरें| जवतक भाखवापियों

के लिए दृत्तिण श्रफ्रोका की भूमिमेंकहीं जरा भी जगह रहेगी तव

तक ट्रान्सवाल सुरक्षित नहीं कहा जासऊता। फिर उनकीरष्ट

से सरकार और भारतीयों के बीच इस प्रफार सुलह होने में तो उल्टी उनकी--कौम फी मानों प्रतिष्ठा चृदू गयो।मि० कर्टिंत उनकी इस प्रत्तिप्ठा कोबढ़ाना नहीं, घढठाना चाहते थे। उन्हें

भारतीयों को सम्मति की शआ्रवश्यकता नथी । वे जो बाह्य नियन्त्रण द्वारा कोम को कँपा देना चाहते ये। इसलिए उन्होंने एशियाटिक कानून का मसचिदा तेयार फ़िया और सरकार को

यह सत्ाह दी कि जब तक इस भसविदे के अनुसार फानूत बन

कर खीझृत नही हो जाता उबतक बाहर से दभ-छिपकर मारदीय

भवे ही रहेंगे और इस तरह आने वालों को बाहर मिफाजषने के लिए कानून मेंकोई व्यवस्था नहीं है। मि० कर्टिम का मसविदा

और उनकी सलाह भी सरकार को बहुत पसन्द हुई। उस

ससविदे के अनुसार वहाँ की धारासभा में पेश करने के लिए-

एक बिज्ञ बनाकर उसे सरकारी गज्षट में प्रकाशित कर

दिया गया। ८ इस बित्त के विषय मेंमेंअधिक कहने के पहले एक महलपूणेप्रसंग को, जो वहाँ घटित हुआ, कुछ शब्दों मेंफह देना अधिक

आवश्यक है। चूँकि मेंसत्याप्रह फा प्रेरक हूँ, इसलिए यह

नितान्त आवश्यक है कि पाठक मेरी स्थिति-परिस्थितियों को

डे

पूरी तरह समम लें। उपयुक्ततरोक्षों से ट्रान्सवाल के भारतीयों को सताने के प्रयत्न हो रहे थे कि उसी समय इधर नेटाल् में - ' पहाँके इबशी-ुलुओं मेंबलवा होगया | मुझे उस समय और

अभीतक सी सन्देद हैकि उस मढ़े कोइस बलवा कह भीर