पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४६

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शध१

युद्ध के बाद

सकते हैंया नहीं! तथापि नेदाज् में उसघटना का परिचय इसी नाम से हमेशा दिया गया है। इस बार भी नेटाज्ञ सें रहनेबाले बहुद से गोरे उस बल़वे को शान्त फरने के लिए सेवक बने | मेंनेटाल का दी निवासी साना जाता था। इसक्षिए मुझे मालूम

हुआ कि मुके भी उसमे नौकरी करना चाहिए। इसलिए कौम

की आज्ञा खेकर सरकार के पास मेने एक सन्देश भेजा कि बह मुमे घायत्ञों की सेवा करने के ज्षिए स्वयंसेवक दल बनाते की इजाजत दें। सरकार ने इसे मंजूर कर जिया । इसलिए

द्वान्सवा् का मकान मेने छोड़ा । वाह्न-बच्चो को मेंनेनेटाल में खेत पर जहाँसे “इण्डियत ओपीनियन” नामक समाचार

पत्र प्रकाशित द्ोता था, और जहाँगर मेरे सहायक त्ोग रहते

थे भेज दिया। आफिस खुला ही रखा था, क्योंकि में जानता था कि मुमे इसमें बहुत दिन नहीं क्षगेंगे ।

२०-५५ आदमियों का एक छोढा-सा दत्न खड़ा करके में

्ौज के साथ शामिल हो गया। इस छोटे से दत्न में भीलगभग तमास जाति के भारतीय थे |इस दल ने एक महीना भर सेवा

की । हमें जो जो काम दिया गया उसे मेने हमेशा परमात्मा का

झनुमह माना | हमने यह देखा कि जो हबशी घायल होते उन्हें

अगर दम न उठा लेते तो यों दी बेचारे सड़ा करते |उन घायल्लों की शुश्रषा करने मेंगोरे कभी सहायता न करते थे। जिस शब्र“वैद्य के पास हमें काम करना पढ़ता था वह स्वयं बढ़ा दयालु पुरुष था। घायक्ों को उठाऋर दवाखाने में लाने पर उनको

शुश्रपाकरना हसारे क्षेत्र के बाहर की बात थी। पर हम तो यह निम्वय, करके गये थे कि थे ज्षिस किसी काम को कहें उसे हम अपने क्षेत्र केभीतर दी समझे | इसलिये उर्स भत्ते डाफटर

ने हमें कहा “मुझे एक भी,गोरा शुभ्रुषा करने के लिए नहीं