पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४७

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दर्य श्रफ्ौफा का इतिददात

रैडर

मिलता । न मेरेपासऐसाकोईअधिकार है किजिसकेद्वारामें

उहहेंयहकाम करने के लिए बाध्य फर सकूँ । इसलिए अगर

आप यह परोपकर करेंतो मेंआपका अहसानम्ंद होझेगा । हमने इसका स्वागत फिया। कितने ही हवशियों केजखस पाँव-पाँव छल दिन से दुरुस्त ही नहीं किये गये ये। इसलिए उत्तें से

हुर्गन्ध आ रही थी। उन्हेसाफ करने काकामहमारे जिम्मे हुआ ।-

और हमेंयह बहुत पसंद भी आया। वेचारे हतशी हमारे साय

बात तो कर सकते ही न थे,किन्तु उनकी चेष्ठाओों भौर आँखों

सेहमयह देखसकतेथेकिउन्हेयहमालूमहोरहाथाकि

उनकी शुभ्वा करने के किए हमें परमात्मा ही ने तो न भेजा हो!इस काम में कसी-कप्ी पिन में चाज्ञीसन्‍्वात्ीस सील भी हमें घक्षतता पढ़ता था | एक महीने के अन्दर हमारा काम्त समाप्त हो गया। भपिफारिय

ों को भी उससे संदोष हुआ। गवनेर नेहमारा भहसान मानते हुए हमें एक पन् लिखा। इस दूत में तीन गुजर ातियों

को साजन्ट का अधिकार दिया गया था। गुज़रातियों को उनके नाम जान करअवश्यहुएहोगा। उनमें एकतोथेउसियांशंकर

शे्षव,दूसरेसुरेन्द्र मढ़राय ेऔरतीसरेहरिशंकर जोशी। तीनों

कसेहुएवदनकेयेऔरठीनोंनेबढ़ीसह्तमेहन कीतथी। अन्य भाइयों के नाम इस समय मुझयाद े नहीं आते | पर इतना

जरूर थादहैकि उनमेंएकपठान भोथा। मुझे यह भीयाद आ रह है कि उसके जितना हो वजन उठाकर उसकेसाथ-

फूच करते हुएहमसबको देखकरउसेबढ़ाआश्रयहोता था|साय'

इसहुकड़ी में काम्र करते हुए मेरेदोविचार जो धीरे-धीरे

पके होरहेथे,परिपक्व होकर बाहर निकल्ले। एक तो यह कि

सेवा-धर्म को प्रधानपद देनेषाले को, अझचये का पालन करना'

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