पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१४८

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युद्ध फे बाद

आवश्यक है। और दूसरा यह कि जिसने सेथा-ध्म धारण किया है उसे हमेशा के लिए गरीबी का त्रत लेना चाहिए। बह कभी ऐसे व्यवसाय में न॑ पड़े जिससे सेवा करने में उसे कभी संकोच मालूम होने का भौका आवे या जरा हिचाहिचाहट भी हो।

इस ढुकड़ी मेंकाम करते हुए भी मेरे पास ट्रान्सवाल फोरन"

लौट आने के लिये पत्र और तार बराबर आ रहे थे। इसतिए

फिनिक्स मेंसबको मित्ञकर मैंफौरन जोहान्सबगे पहुँचा |और चहाँ उपयुक्तबिल पढ़ा। बिलवाला गनद मेआफिस से घर पर

ले गया था। घर के पास एक छोटी सी टेकड़ी थी। वहाँ अपनेः साथी को लेकर में“इण्डियन ओपीनियन” के लिए उस विल्न का

अनुधाद कर रहा था। जेसे-जेसे में उस बिल फी धारायें पढ़ता"

जा रहा था; बेसे-वैसे मेरा बदन कॉपता जाता था। मैंउसमें

सिवा भारांतयों के ठवेष केऔर कुछ भी न देख सका। मुझे उस समय यह मालूम हुआ कि अगर यद्द बिज्ञ पास हो जाय

और भारतीय उसे कुबूत् कर लेंतो दक्षिण अफ्रीका से भारतीयों के पैर लड़मूल सेउखढ़ गये यही सममना 'चाहिए। मेंस्पष्ट रूप से यह देख सका कि भारतायों के लिए बह जीवन-मरण

का प्रश्न था। झुमे यह भी भास होने क्षणा कि यदि अर्जियाँ

देकर कौम को सफत्ञता प्राप्त ॥ हुईं तोअब बह चुपचाप भी नहीं बैठ सकती । इस फानून के आगे सिर भुकाने फो अपेक्ता तो मरना भत्ता है। पर भरें केसे ?ऐसा कौन मार्ग हैलिसकेअवलम्बन से अथवा अवत्वम्बन का साइस करने से कौम के सामने केवल दो द्वी बातें रहें--जीत या मौत ! तोसरी बाद दी ' न बिखे ! मेरी आँखों के सामने तो ऐसी भयंकर दीवार खड़ी: हो गयी कि मुमे तो कोई यत्ता सूकता ही न था। मिस कागज

ने मुझे इतना दहला दिया उसे पाठकों को तोअवश्य जान लेनाए