दक्षिण अफ्रीका का संत्याग्रह
१४६
कानून के आधार पर ट्रान्सवाज् से बाहर तिकात्न दिया जा
सकता है। अरथाद्र उसकी आर्थिक स्थिति का सत्यानाश हो' सफता है| इत कानून के भंग से हाज्ञत यहाँवक चाजुक हो जा सकती है। और अगर पाठक अधघीर न होंतो वे यह भी पढ़ेंगे
कि इस अपराध के लिए भारतीयों को ऐसी सजायें हो भी चुकी'
हैं।गुनाह करनेवाली कौमों के लिए भारत मेंकितने दी सख्त
कानून है। वस उनसे इस कानून की तुलना आसानी से की जा
सकती हैऔर उस तुलमा में आप यह न कह सकेगे कि यह
कानून किसी प्रकार भी क्रम सख्त है। दसों अंगुलियों की छाप लेंगे की बात तो अफ्रीका में बिल्कुज्ञ नयी थी |एक वार इस विषय का साहित्य पढ़ने फी इच्छा से किसी पुलिस अधिकारी की लिखी “अँगुलियों की छाप
( फिंगर इस्प्रेशन्स ) नाम की पुस्तक मैंनेपढ़ी॥ उसमें मैंने यह
पढ़ा कि इस तरह कानून के अनुसार अँगुलियों की छाप केवल जुमेकरनेवाल्षों से ही ली ज्ञाती है।इसलिए जबरदस्ती ँगुलियों की छाप लेने की वात भुमेवडी ही भयकर मालूम हुई । जियो तथा सोक्षद्द वर्ष के भीतर के बच्चों के परवाने लेने की प्रथा भी!
कानून प्रेपहले पहल ही बजे हुईथी।
दूसरे दिन छुछ गण्यमान्य भारतीयों को इकट्ठा करके मैंने
/उन्हें यह कानून अक्षर-अच्तर सममाया। उसका असर उनपर
भी चह्दी हुआ जो मुमपर हुआ था। उनमें सेएक तो आवेश में घोल उठे “मेरी औरत से अगर कोई परवामा मॉँगने के क्षिए
आवेगा तो मैंउसे वहीं का वहीं ख़तम कर दूँगा, फिर मेरा जो , कुछ होना होगा होता रहेगा !” मैंने उन्हें शान्त, किया और सवसे कट्दा “यह मामला बहुत गम्भीर है| झगर यह विज्ञ पास
दो जाय घौर हम उसे इुबूज फर। लेंतो सारे दक्षिण अफ्रोका