पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दत्तिण अक्रीका फा सत्माग्रए

१५०

यह प्रस्ताव मैंनेसभा को पूरी तरद समझा दिया। सभा ने उसे शातिपूर्षक सुन लिया। कार्रवाई तो तमाम हिन्दी और

गुजराती में ही द्वोरही थी, भथात्‌ यह तो संभव नहीं था कि कोई समझता न होगा। जो तामिल और तेलगू भाई हिन्दी नहीं

समम सकते थे उन्हें उन्हींकी भाषा में सब बातें समझा दी गयी । नियमानुसार एक दरख्वास्त भी धनायी गयी | 'अनेफ आद*

उसका समर्थन किया। वक्ताशं मेंएक सेठ दवाजी हयीव मिर्यों ने

भी ये। बह भी दक्तिश अफ्रीका के बहुत पुराने और अलुभवी बाशिन्दे थे।उनका भाषण वढ़ा जोशीला था।

आवेश में

आपने यह भी कह दिया कि "परमात्मा को साक्षी करके इस प्रस्ताव को हमेंरवीकृत करता है। हम नासदे बनकर कमी इस कानून के वश नहीं दोसकते | इसलिए मेंवो अल्लाहपाक की कसम खाकर भ्रतिज्ञा करता हूँकि में कभी इस फानून के वश नहीं द्ोऊँगा। में इस मगलिस से भी यददी सिफारिश करता हूँ कि वह भी अल्लाह को साक्षी फरके इसो प्रकार प्तिज्ना ले |”

इसके समर्थन मेंऔर भी कई जोशीले भाषण हुए थे। पर

जब सेठ हाजी दबीव वोलते-चोलते कसम खाने पर आये तब में एकद्स सावघात हो गया |घस, उसी समय मुझे! अपनी और

फौम की जिस्मेदारी का पूरा-पूरा खयाल हुआ । आजतक कोम

नेकितने ही प्रस्ताव पास किये थे ।अधिक विचार करने पर

तथा नवीन अतुभव प्राप्त होने पर उसमें यथासमय परिवतंन भी किया था ।यह भी होता था कि ऐसे प्रस्तावों परसब असल भहीं फरवे थे। प्रस्ताव में परिवत्तेन, और सहमत होनेवाक्षों का भी पीछे से इन्कार करना आदि संसार में साथेजनिक

ज्ञीषन के स्वाभाविक अनुभव' हैं । पर ऐसे प्रस्तावों केबीच फोई इश्वर का नामनहीं लेता था। सात्विक दृष्टि सेदेखा जाय