पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१५६

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' सैत्यामह का जन्म

तो निश्चय और इश्वर का लाम लेकर प्रतिज्षा करने मेंकोई भेद न होना चाहिए । बुद्धिमान्‌ मनुष्य जिस किसी बात का विचार-

पूरक निश्चय कर जषेता हैउससे वह बिचलित नहीं होता | उसके लिए वह ईश्वर को साक्षी बनाकर की गयी प्रतिज्ना के बराबर ही है। पर संसार सात्विक निणयों से नहीं चलता । ईश्वर को साक्षी

बनाकर की हुईप्रतिज्ञा और सामान्य निश्चय में वह जमीनशआस्मान का भेद भानता है। सामान्य निश्चय को बदलते हुए

मनुष्य को क्षब्जा नहीं मालूम होती । पर अतिन्लाबद्ध मनुष्य से

अगर अपनी प्रतिज्ञा का भंग हो जाता है तो बह स्वयं शरमाता है और समाज उसे फदकार देता है--पापी समझता है। यह्‌

बात इतनी गंभीर हैकि वह कानून मेंभी समाविष्ट हो गयी है। क्योंकि यदि किसी बात की कसम खाकर आदमी उसका भंग

करे तो वह एक अपराध माना गया हैऔर कानून मेंउसके

(लिए सख्त सजा रक्खी गयो है।

इन विचारों का रखनेवात्ञा प्रतिज्ञाओं का अनुभवी, प्रति-

ज्ञाओं के मीठे फत् चखनेवाला मैंभी उपयुक्त प्रतिज्ञा को बात सुनकर स्तव्घ हो गया। एक क्षणभर के अद॒र मैने उसके तमाम

परिणामों को देख लिया | उस घबराहट से शक्ति का जन्म

हुआ | और यद्यपि मेंबहाँगर न तो स्वयं प्रतिज्ञा करने गया था और न लोगों से प्रतिज्ञा करवाने के क्षिण गया था तथापि सेठ हाजी हबीव की बात मुमे बहुत ही पसंद आयी। पर साथ ही

मुझे यह भी उचित सालूम हुआ कि जनता को उसके तमाम

परिणामों से परिचित कर दुना चाहिए, प्रतिज्ञा का अथ रपष्ट रूप से उसे सममता' चाहिए और इतने पर भी यदि बह प्रतिज्ञा करे तो उसका सहर्ष स्वागत करना चाहिए और अगर न करे

सो मुझे समझ केना चाहिए कि लोग अभी अन्तिम कसौदी पर