पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दर्षिण श्रफ्मीका का सत्याग्रह

श्पर्‌

चढ़ने के लिए तैयार नहीं हुए। इसलिए मेने अध्यक्ष महाशय

से इस वात की इजाजत माँगी कि वेमुके सेठ हाजी हवीव के

भाषण फा रहस्य सममाने दें। मुझे आज्ञा मिल गयी। मेंउठा। और उस समय मैंनेजो कुछ कद्दा उसका सार मुमे जिस प्रकार

याद है,मेंनीचे देरहा हूँ।

"मेँ सभा फो अभी यह बात समरमा देना चाहता हूँकि

आजतक हमने जो प्रस्ताव जिस प्रकार स्त्रीकृत किये हैं.उनमें,

उनको रीति मेंऔर थाज के प्रस्ताव और उनकी रोति मेंजमीन-

आस्मान का फ्रक है। यह भ्रस्ताव बढ़ा गंभीर हैं. क्योंकि उसपर

पूरा अमल करने पर ही दक्षिण श्रफ्रोका में हमारा अस्तित्व

निर्भर है। इस प्रस्ताव को स्वीकार करने की जो नवीन रीति हमारे इत भाई नेबतायी हैबह लितनी नवीन हैउतनी गम्भीर

भी है। मेंस्वयं प्रस्ताव को इस प्रकार स्व्रीकार करने के विचार

से नहीं आया था इसका पूरा श्रेय तो सेठ हाजी हमीव को ही और इसकी निम्मेदारी भी उन्हींके ऊपर है। उनको में धन्यवाद देता हूँ। उत्तकी सूचना मुक्तेबडी ही अच्छी लगी।

ओर अगर आप उनकी सूचना को स्वीकार फर लें तो

आप भी उनकी गम्भीर जिस्मेदारी के हिस्सेदार हो सकते हैं। पर आपको पहले यह सममः लेना चाहिए कि वह जिम्मेदारी क्या हैश्रौर कौम के सलाहकार और सेवक की हैसियत से

मेरा चह धम हैकि मैंआपको वह पूरीतरद सममा दूँ!

“हम सव एक ही सिरजनद्वार को मानते हैं। उसे मुसलमान

अल्ते ही खुदा कहकर पुकारें, हिन्दूभत्ते ही ईश्वर कहकर उसका

मजन करें पर वह है एक ही स्वरूप। उसको'साज्षी बताकर--

च्से"लक ४ बनाकर हम पतिज्ञा लें याकसम खावें यह कोई ऐसी-बैसी

्छ

बात नहीं। ऐसी कसम खाकर यदि हम उससे