श्ध्रे
सत्याग्रह का जन्मः
विचल्ित हो जाये हो फोम के, संसार के और परमात्मा के
हम अपराधी होंगे। स्वयं में तो यद् मानता हूँकि यदि मनुष्य सावधानी से और निमल्-दुद्धिपूषेक फोई प्रतिज्ञा करके बादमें उसे
तोड़ देतो पढ़ अपनी मनुष्यता खो येठता हैश्रौर जिस तरह यह् मालूम होते द्वीकि पारा चढ़ाया हुआ ताँवे का सिक्का रुपया नहीं
है,उसे कोई नहीं पूछता, इतना दी नहीं चल्कि उस खोटे सिक्के
को रखनेवाल्ा दण्डनीय माना जाता है,ठोक उसी तरह भूठी
कसम खानेवाला आदमी भी कौड़ी कीमत का हो जाता है। बल्कि लोक-परलोक में दोनों जगह वह सजा का पान्न हो जाता
है। सेठ हाजी दवीव आपको इतनी ही गम्भीर कसम खाने के
लिए कहद्द रहे हैं। इस सभा मेंऐसा एक भी मनुष्य नहीं हैजो
बच्चा या झज्ञानी कद्दा जासकता हो। आप सब प्रौढ़ हैं,संसार
देखे हुए हैं, अधिकांश तो प्रतिनिधि हैं । आपमें से कई भादयों ने छोटे या बड़े परिमाण में जिम्मेदारियाँ भी उठायी हैं।
अर्थात्इससभा में सेएक भी आदमी यह कहकर नहीं छूट
सकता कि वगेर सममेन््यूमे दी मैंने प्रतिज्ञा लेज्ञी थी।
“में जानता हूँकि प्रतिज्ञायें, त्रत चगेरा किसी असाधारण
प्रसंग पर द्वीलिये जाते हैंऔर लिये भी जाने चाहिएँ। उठते चैठते प्रतिज्ञा लेनेवाला आदमी जरूर पछतावेगा | पर यदि हमारे सामाजिक जीवन मेंइस देश मेंप्रतिज्ञा लेने लायक किसी प्रसंग
की मेंकल्पना कर सकता हूँतो वह अवश्य यही है । होशियारी' इसी मेंहैकि ऐसे समय पर बहुत सोच-सममकर आगे कदस रक््खा जाय । पर भय और सावधानी की भी हृद होती है। इस
हद को दम पहुँच चुके हैं। सरकार सभ्यता की मर्यादा को
लाँघ गयी है,दमारे चारों ओर उसने जब द्ावानल क्ञगा दिया है
तब फिर भी हम यदि न चेतें और गफलत मेंपड़ेरहें तोनालायक