पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

2

उत्पाग्रह का जन्म

सम्भव हैकि कसम खानेवालों में सेभी कितने ही पहली कसौटी

पर ही फम्जोर सावित हों। हमें जेल में जाना होगा, वहाँ अपमान सहन करना होगा, भूख प्यास, और धूप भी मेलना

पड़ेगी, सख्त मजूरों करमी पढेगी; उद्ण्ड दरोगाओं के हाथ की सार भी खानी पड़े तोआश्चये नहीं। जुर्माना होगा और कुर्की

में मात-असबाव भी बिक जा सकता है। अगर लड़नेवाले बहुत

थोडे रद्द जायें तोहमारे पास बहुत सा धन होते हुए भी हम कंगाल हो जावेंगे |देश बाहर भी निकाल दिये जा सकते हैं।

भूख और जेल के अन्य दु.खो को सहते हुए हममें से कितने

डी घीमार होंगे और कोई-कोई मर भी जायें तो हमें 'आशचये न होना चाहिए। अथांतू संक्षेप में कहना चाहें तोआश्चर्य नहीं कि आप जितने दु:खों कोकल्पना कर सकते होंवे सभी हमें

सहना पड़े और सममदारी तो इसीमें हैकि हरएक आदी को यहीं सोचकर प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि यह सब अकेले मुमीको

सहना पड़ेगा |अगर कोई मुमसे यह पूछेकि इस लड़ाई का अन्त कब और क्या द्वोगा तो मैंकह सकता हूँ. कि यदि सारी कौम

इस परीक्षा मे से पूरी वरद उत्तीर्ण दो जाय तब तो शीघ्र ही इस लड़ाई का अन्त हो सकता है | पर अगर हसमें से बहुत से आदमी भुसीबत आने पर फिसल जायें तब तो वह बहुत दिन

तक चलेगी। पर फिर भी यह तो में साहस और निश्चय के

साथ कद्द सकता हैँकि--जबतक अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहनेवाले मुट्ठी भर आदमी भी बने रहेंगे तबतक इस युद्ध काअन्त एक ही

प्रकार से हो सकता है--अर्थात्‌ हमारी जीत ही होगी।

, “अब मैंअपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी के विषय भेंएक दो शब्द कद्दना चाहता हूँ। यद्यपि मेंआपको प्रतिज्ञा लेने से. आगे आनेवाली कठिनाइयाँ दिखा रहा हूँ तथापि साथ हो साथ मैं