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दक्तिय अ्रफ्तोका का सत्याग्रह

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आपको प्रतिज्ञा लेने के लिए प्रेरित भी कर रहा हूँ।इसमें में

अपनी जिस्मेदारी वरावर सम्ममता हूँ|हो सकता है.कि आवेश या रोप के कारण इस सभा का बहुत बड़ा हिस्सा यद्द प्रतिद्वा

करे, पर मुसीबत के समव कमजोर साबित हों भर श्राखिरी

ताप सहन करने के लिए केवल मुट्टो भरआदमी द्वीरद जावें।

पर मेरेजैसे आदमी के लिए तो केवज् एक ही रास्ता बचा है और वह है'सर मिटना पर इस कानून केवश न होना । मैंतो यह

भी मानता हूँकि फर्ज कोन्िए--यद्यपि ऐसा होने की जरा भी सम्भावता नहीं वथापि मान लीजिए--कि सभी फिसक्ष पड़े, और

अकेला में ही रद्द जाऊँ तथापि मुझे यह पूरा विश्वास हैंकिः उस द्वालत मेंभी मुझसे प्रतिज्ञा का भेंग कदापि नहीं हो सकता | मेरे कहने के हद शा को समझ लोजिए। यह घमर्ड की बात

नहीं। पर इस मेंच पर बेठे हुए नेताओं को सावधान करने के लिए यह कहा गया है। अपना उदाहरण लेकर मेताओं को में विनयपूरवेक यह कहना चाहता हूँकि अगर आपके अन्दर यह

शक्ति न दो कि आपके केवज्ष अकेले रह जाने पर आप उस पर

इढ़ न रह सकेंगे वो वह प्रतिज्ञा मत कीजिए । इतना ही नहीं घल्कि इस प्रस्ताव पर प्रतिज्ञा की जावे उसके पहले अपना विरोध

प्रकक कर दीलिए और उममें अपनी सम्मति मत दीजिए ।

यद्यपि हम सब इस प्रतिज्ञा को एक साथ हो करना चाहते हैं:

तथापि कोई इसका यह अथ लत करे कि यदि एक अथवा अनेक

आदमी अपनी प्रतिज्ञा का मंग न करें तो शेष भीअनायास इस

बन्धन से मुक्त हो सकते हैं। इरएक आदमी अपनी पूरी जिम्मे--

दारी के साथ खतंत्र रूप से प्रतिज्ञा ले और साथ ही प्रतिज्ञा लेने

के पहले यह भो निश्चय कर लेंकि दूसरे चाहेजो करें लेकिन मैं"

वो जबवद्न शरीर मेंप्राण रहेंगे तवतक उस पर हृढ़ ही रहूँगा।”