पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"२७

सत्याग्रह का जन्म

इस प्रकार बोल कर मेंवेठ गया। जनता बढ़ी शान्ति के साथ एक-एक शब्द सुन्त रहो थी। अन्य नेता भी बोलें । सबने अपनी तथा श्रोताओं को, जिम्मेदारी काविवेचन किया । अध्यक्त चठे। उन्होंने भी यही समकाया, और अन्त में सारी सभा ने खड़े होकर परमात्मा को साक्षी रखकर यह प्रतिज्ञा कीकियदि कानून पास हो जाय तो दस उसके आगे मिर न भुकावेंगे |बह

दृश्य ऐसा था कि में उसे कभी भूल नहीं सकता। जनता में बेहद उत्साह था | दूसरे ही दिन उस नाथ्यशाला में अचानक

आग लगी और वह जलकर भस्म हो गयी | तीसरे दिन लोग मेरे

पास आये श्र कौम को भुवारकबादी देते हुए कहने लगे कि 'ताव्यशाज्ा छाजलना कौस के लिए एक शुभ शक्ुन है | नाव्यशात्ा की तरद् वह कानून भी एक दिन जल जायेगा। पर

ऐसी बातों का मुझ पर कभी कोई असर नहीं हुआ । इसलिए

मैंने उसे कोई महत्व नहीं दिया | यहाँ तोइस बात का उल्लेख

फैचल यह वताने के लिए किया है कि जनता मेंकितनी श्रद्धा और शौय था और इन दोनों बातों के बहुत से लक्षण पाठक आगामी प्रकरणों मेंपढ़ेंगे।

उपयुक्त विराट सभा के बाद कार्यकर्ता बैठे न रहे। स्थान

स्थान पर सभायें की गयीं, और सब जगह सर्वानुमत्ति से प्रतिज्ञायें कीगयीं ।अच 'इस्डियन ओपीनियन की मुख्य चर्चा ना विषय यह खुली कानूनों ही बन गया। उधर स्थानीय

सरकार को सिलने के लिए भी प्रयत्त किये गये। उस विभाग के मुख्य सचिव के, पास एक डेप्यूटेशन (शिष्टमण्डज्ञ ), गया।

प्रतिज्ञा कीबात भी कही गयी । सेठ द्वाजी हथीब, जो इस डेप्यूटेशन मेंये,घोले--“अगर मेरी औरत को अँगुक्तियों फी,छाप

॥ |

| +

"लेने केज्िण कोई अधिकारी अआव्ेगा तो मैंजरा भी अपने गुस्से । ठ्र