पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१७६

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विलायत फो डेप्यूटेशन

सकुभाते थे। एफ थार प्रतिता लेने पर यदि पचास घार भी बद्दी

करना पड़े तो इसमें तो फदापि संफोच न होना चाहिए । यह होते हुए भी यह किसे अनुभव नहीं है कि सनुष्य प्रतिज्ञायें करने पर भी ढोले पढ़ जाते हैं। अथवा मुँह से की गयी प्रतिज्ञा

को फ्रागज् पर लिखते हुए द्चिकियाते हैं | रुपये भी हमारे

अझत्दाज़ के मुझाफिक इकट्रे हो गये ।सबसे अधिक कठिनाई तो प्रतिनिधियों के चुनाव के बारे मेंहुई। मेरा नाम तो था ही।

पर मेरे साथ फौन-कोन जायें |इस विचार में कम्रिटी को बहुत सा समय लग गया । कितली हो रातें व्यर्थ नष्ट हुई और ममाजों

में लो-जो बुराइयोँ देखी जातो हैंसबका पूरा-पुरा अनुभव हुआ कोई मुमे 'अरकेला दी जासे के लिए कद्दते थे ।वे कहते कि

इसमें सबको सन्‍्तोष रहेगा। पर मैंने इसके लिए साफ इन्कार

कर दिया। सामान्यतः यह कहद्दा जासकता है कि हिन्दू-मुसजलमानों का सवाल दक्तिण अफ्रीका मेंनहीं था घथापि यह दावा

दो कदापि नहीं किया जा सकता था क्रि दोनों कौमों के बीच जरा भी सेद न था और इस भेद ने कभी जहरीला स्वरूप धारण नहीं किया। इसका कारण कुछ 'अंश मेंवहाँ के विचित्र संयोग

हो सऊते हैं ।पर इसका! खास कारण तो यही था कि नेताओं

ने एकनिप्ता से निस्यृहतापूवेक अपना काम करते हुए कौम को

आगे बढ़ना था । मेरी सलाह यह थी कि मेरे साथ-प्ताथ एक

मुप्तलमान गृहस्थ तो होना द्वी चाहिए और दो से अधिक

आदमियों की आवश्यकता नहों।पर हिन्दुओं की ओर से

औरन कहट्दा गया कि मेंतो सारी कौम का प्रतिनिधि माना जाता

हूँअर्थात्त्‌ हिन्दुश्रों कीओर से तोएक और प्रतिनिधि अवश्य

होना चाहिय | कोई-कोई यह भी फहता है कि एक, कोॉकेणी

मुसलमानों की और से, एक मेमनों कीतरफ से, और हिन्दुओं