पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१८

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भूगोल हो जाते हैं कि एक गरीब आदमी भी पेट भर खा सके। यह नहीं हो सकता कि जहाँ हिन्दुस्तानी रहते हो वहाँ आम के पेड़ न हों, हिन्दुस्तानियों ने आम की गुठलियाँ लगायीं। इससे वहाँ आम भी अच्छी तादाद में मिल सकते हैं । कुछ किस्म के आम तो बम्बई के हापुस पायरी' का जरूर मुकाबला कर सकते हैं। साग-सरकारी भी उन रमीली भूमि में पैदा होती है, और शौकीन हिन्दुस्तानियों ने तो हिन्दुस्तान की लगभग हर किस्म की माग- तरकारी वहाँ तैयार कर रखी है। मवेशियों की तादाद भी खूब है। गाय-बैल हिन्दुस्तान गाय-बैत से ज्यादा ऊँचे-पूरे मोटे-ताजे और बलवान होते हैं। गोरक्षा का दावा करनेवाले हिन्दुस्तान में अनेक गायों-यैलों को हिन्दुस्तान के लोगों की तरह हुवला-पतला देखकर मुझे बड़ी शर्म मालूम होती रहती है और अनेक धार मेरा हृदय रोया है। मुझे याद नही पड़ता कि दक्षिण अफ्रीका में दुबली गाय या बैल मैंने देखे हों; हाजों कि मैं प्राय: अपनी आँखे खोलकर सारे देश में धूमा हूँ। कुदरत ने अपनी अन्य देनो के साथ इस भूमि को सृष्टि-सौन्दर्य से सजाने में कोई कमर नहीं रखी है । डरबन का दृश्य बडा ही सुन्दर माना जाता है, परन्तु केप अन्तरीप को वस्तु वस्ती उससे भी बढ़ जाती है। केप टाउन 'टेबुज्ञ माउंटेन नाम के एक पहाड़ की तलहटी पर बसा हुआ है, न बहुत ऊँचा न बहुत नीचा । एक विदुषी ने जो दक्षिण अफ्रीका की भक्त है, इस पहाड़ पर एक कविता लिखी है। उसमें वह कहती है कि लो अलौकिकता मैंने 'टेवुल माउंटेन में अनुभव को है वह किसी पहाड़ में नहीं। इसमें चाहे अत्युक्ति हो-मेरी राय में अत्युक्ति है, पर इसकी एक बात मुझे अँच गयी। वह कहती है कि 'टेवुल भाउन्टेन' केपटाउन के निवासियों के मित्र का काम देता है। यह