पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१८३

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दक्षिण श्रप्मीका का सत्याग्रह

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होतो श्राप जानते ही दै कि मेरे जैसा बृशक्ञ लेखफ भाप कभी नहीं मिल सकता ।” हमें तो दोतो सहाग्रगरशों

आवश्यकता थी। और इस प्रंप्रेज् ने गतदित पक भी पैसा न

खेतेहुए हमारा काम फर दिया, यह फहते हुए मैं लेश मात्र भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूँ।राद के बारह-बारह और ए४”

एक बजे तक तो बह, हमेशा टाहप-रायटर पर ही ठेंटों रहवा ।

समाचार पहुँचाना, डाकप्ाने जाना यह मग्र मिमहज्ञ करत और सब हँसते-हँसते। मुझे याद हैकि 5मकी मासिक प्राय लगमग

४५ पौंह थी। पर यह संघ वह अपने मित्रों वैसा की सद्दायता मेंलगा देता। उसकी उम्र उस सम्रय करीब ३० साज्ञ फी होगी। पर अब तक श्रविवाहित हो था। और श्राज्ञीपन पैसे ही रहना भी चाहता था। मेन इसे कुछ तो लेने के लिए बहुत आप्रद्द किया। पर उसने साफ इन्कार कर दिया ! वह कहता

कि “यदि मेंइस सेवा के लिए मजदूरी लूँतो अपने धर्मसे भ्रष्ट हो जाऊँ।” मुझे याद हैकि आखिरी रात को धमें अपना काम

समेटते, असचाव बाँघते करते सुबह के तीन चज गये थे। पर

तबतक भी वह जागता दी रहा | हमें दूसरे दिन स्टीमर पर बेठा

कर ही वह हमसे जुदा हुआ । वह वियोग बड़ा हुःखदायी था।

मैंने ते यह कई बार श्रनुभव किया है. कि 'परोपकारः केवल गेहुँएरंग के ज्ञोगों कीहीविरासत नहीं है।

सावेजनिक काये करनेवाले युवकों के स्िए मैंयह भी यहाँ

कह देता हूँकि ढेप्यूटेशन के जचे का हिसाब हमने इतनी उत्तमता के साथ रक्खा था कि रदोमर पर सोड़ाबाटर पीने पर उसकी

जो रसीद मिलती बह भी उसने पैंसोंकेखर्च की निशानी--वाउचर के वदौरसावघानी के साथ रखली जादी थी। उसी प्रकार तारों को रसीद भी रख ली जातीं। मुझे अवतक यह याद नहीं आता