पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१८४

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विलायत को डेप्यूटेशन

कि कच्चे हिसाब मेंउस समय कहीं फुटकर खचचे के पेसे लिखे गये हों ।आप तो समझ त्रीजिए कि थेही नहीं। “याद नहीं” यह जोडने-का फारण यही कि शाम को हिसाब लिखते समय दो चार

पैनी या दो चार शिलिंग याद न रहे होंऔर फुटकर मेंलिख दिये होंतो नहीं कह सकता ! इसलिए मेंने अपवाद के लिए "याद्‌ पहों” इन शब्दों का प्रयोग किया है। इस जीवन में एक यह बात मैंने अच्छी तरह समझ ली है कि जबसे दम होश सम्हात्ते हैंतबसे ट्रस्टी अथवा जवाबदेद बन जाते हैं। जबतक माता-पिता के साथ द्वोते हैं तबतक वे

लिस किसी कामको सारे ज़िम्मे सोपे या पेसे दें तो उनका हिसाव उन्हे अवश्य ही देना चाहिए । अगर थे विश्वास से न माँगें तोइससे हम उस उत्तरदायित्व से मुक्त नही हो जाते |जब

हम खतंत्र दो जाते हैंतब स्त्री-पुत्रादिकों के प्रति इस उत्तरदायी हो जाते हैं। अपती कमाई के माज्षिक केवल हम नहीं हैं। वे भी उसके हिस्सेदार हैं। उन्तके ज्षिए हमें पाई-पाई का हिसाब रखना चाहिए । फिर साबजनिक जीवन में आले के बाद क्‍या

कट्दा जाय !मैंने यह देखा हैकि स्वयंसेषकों मेंयह एक आदत

सी पढ़ गयी हैकि मानो वे उनपर सौपि गये कार्य या पैसे का

कच्चा हिसाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं; क्योंकि वे मानते हैं कि अविश्वास के पात्र वे कभी हो ही नहीं सकते। यह तो घोर अज्ञान ही हे|दिप्ताव रखने से विश्वास-अविश्वास का कोई संबंध दी नहीं है। हिसाब रखना यही स्वयं एक स्वतंत्र धर्म है

उसके बिना रवयं हमें अपने काम को ही मक्ञीन समझना चाहिए।

ओर जिस संस्था के दम स्वयंसेवक होंउसके नेता अगर सिथ्या

शिष्टाचार केवश होकर या उससे ढरकर हमसे हिसाव ने

साँगें तो वे भी दोष के पात्र हैं। कास का और रुपयों का हिसाब