पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१८७

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दत्तिय अ्रफ्ीका का सत्याग्रह

श्पर

सल्तनती संस्थान रहेगा, तबतक ऐसे कादून के लिए

सम्राद्‌ सरकार निम्मेदार मानी जाती है। और सम्राद्‌ सरकार केशासन विधान में ऐसे भेद भरे कानूनों को स्थान नदी दिया जाता । इसलिए इस सिद्धान्त के ख्यात्ञ से फिलहाह्ष तो अनेक को यही सलाह देनी चाहिए कि वह उसे नामंजूर कर दे| सर रिचंढ साह्योमत को इस बात के लिए तिलमात्र भी

आपत्ति नहींथी,किअभी नाममात्र के ज्िए कानून रद हो जाय भर आगे चलकर गोरों काभी काम अनायास वन जाय और झापत्ति ो भी कैसे सकती है? इस राजनीति के लिए

उपर मैने वक्र विशेषण छ्गाया हैपर यदि ययथाथथत्त:ः इससे भी तोब्र विशेषण लगाया जाता तो मरे झ्यात्ष से उस राजनीति के संचाक्कों के प्रति कोई अन्याय न होता |सल्तनती संस्थान के कानूनों के लिए सम्रादू सरकार जिम्मेदार रहती है। उसके विधान मेंरा और जातिमेद्‌ को स्थान नहीं है। ये दोनों चार्ते हैं तो बढ़ी सुन्दर । यह बात भी समझ सेंआने योग्य हैकि

उत्तरदायित्व पू्ं शासन वाले सस्थाव जिन कादूनों को

अनावें उन्हें सम्राद्‌ सरकार एफाएक रद नहीं फरसकती | पर संस्थानों के राजदूतों केसाथ छिंपकर सल्लाद्द मशविरा

करना, उन्हें पहले द्वी से सम्राद्‌सरकारके शासन-विधान के प्रतिकूल कानूनों कोनामजूर न करने का वचन देना, क्या इसमें जिनके सत्वों काअपहरण हो रद्यादो,उनके साथ दगा और

अन्याय नहीं द्ोता है ! सच पूछा जाय तो लाढे एल्गित ने,

अपने इस वचन द्वारा ट्रान्सवात्ष के गोरों को भारतोयों के

खिल्लाफ अपनी हलचल शुरू रखने के किए मानों उत्साहित दी

किया। अगर ऐसा ही उन्हेंकरता था तो मारतोय प्रतिनिधियों