पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१८९

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दच्तिए श्रफ्ौका का सत्याग्रह

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मेंनिराशा हुई |तथापि इस वक्रता का बात्कालिक परिणाम

तो यह हुआ कि कौम में और भी जोश उत्पन्न हो गया। अब सभी कहने क्ञग गये कि हमेंक्या परवाह है( हम कब

सम्राद्‌सरकारकी सद्दायता के लिए ढदरने वाले हैं ! हमें वा

अपने बज्ञ पर और जिसके लिए प्रतिज्ञा कीउस परमात्मा के

आधार पर लड़ना है। और अगर हम सच्चे बने रहे तो बह देढ़ी राजनीति भी स्रीधी हो जायगी। ट्रान्सवाज् में उत्तरदायित्वपूर्ण शासन .की स्थापना हो गयी | उसका पहला कदम था बजट और दूसरा वही “खूली कानून ।

एक दो शब्दों को इधर उधर छोड़कर वह वैसा ही पास हुआ जो कि पहले वनाया गया था और पास हुआ था। इन शब्दों के रहोबदक्ष का फानून की सख्ती केसाथ कोई सम्बन्ध नहीं था। वह तो जैसी थी बसी ही रही। अर्थात्‌ कानून का रद होना तो मात्र रूप्त सृष्टि कीबात रह गयी। भारतीयों ने रिवाज के

अनुसार अर्जियाँ बगेरा तो कीं पर इनकी तूती कीआवाज कौन

सुनता ! उस कानूत के अनुसार नवीन परवाने लेने के लिए उसी साज्ञ के (१६०७ )अगस्त की पहली तारीख का दिन निश्चित क्या गया । इतनी लम्बी मीयाद रखने का कारण यह

नहीं था कि भारतीयों के साथ कोई रियायत की जाय, बल्कि

यह था कि शासन-विधान के अनुसार सम्राद सरकार की भी सम्मृति छेता वाक़नी था | उसके लिए अवश्य दी कुछ समय

ल्गठा । दूसरे उसके परिशिष्ट केअनुसार कई पत्रक, किवाबें, परवाने बरोश कई चीजें तैयार फरवानो थीं। स्थान-स्थान पर , परवानों के दफ्तर खोलना आदि काम के ज्िए भी छुछ समय

की आवश्यकता थी। इन पॉच-छः मद्दीनों कासमय ट्रान्सवाल सरकार ने अपनी ही सुषिधा के लिए दिया था। ह