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झदटमद मुहम्मद फाछुलिया
कर लेना जरूरी था । अन्त में मत्याप्रही का यह दृढ़ निश्चय था कि पो ज्षोग 'अश्रद्ा, फा्रजोरी या अन्य फ़िसी कारण से मत्याप्रह मेंसम्मिलित न दो सके उनसे प्रति वे द्ेपभाव न रक््खें यदी नहीं, पल्कि उनके माथ जिस स्नेह भाव से 'प्रभी तक रे
आये एँ,उसमें फोई भी परिवर्तन न दोने दिया जाये । और
सत्वाप्रठ को दोड़कर 'प्रन्य इलचलों में उनसे मिल्-जुश्फर ही काम-कान ऊिया जाय |
इन विचारों केकारण कोम इस निश्चय पर पहुँचो कि किसी भी वतमान संस्था के द्वारा सत्याप्रह क्रा संचालन न किया
जाये। अन्य संस्यायें जितनी सहायता कर सके करें, और सत्याप्रह को दोड़फर इस खूनी कानून के खिलाफ जितने उपायो
का 'अवलबन फिया जा सके वेकरें। इसलिए “पंमिव रेनिस्टेन्स एसोमियेशन"” अथवा 'सत्याप्रह-मण्डल” नामक एक नवोच संस्था की स्थापना मत्याग्रहियो नेकी । अग्रजी नाम से
पाठक इस बात का पत्ता लगा सकते हैं किज्ञिस समय उपयुक्त संस्था की स्थापना हुई उस समय तक “सत्याप्रह!
शब्द का
जन्म नहीं हुआ था। जेसे-जसे समय वबोतता गया वेसे -वेसे कौम को यह अनुभव होने ज्ञगा कि नवीन संस्था को स्थापना द्वारा हर प्रकार से उसे फायदा ही हुआ हैऔर अगर ऐसा 8म न करते तो शायद उस आन्दोलन को हानि ही पहुँचती। इस
नवीन संस्था के सदत्य भी बहुत से लोग हुए और खुले हाथों से उन्होंने उसकी आर्थिक सहायता भी की।
मेरा अनुभव तो मुमसे यह कह्द रद्दा है किकोई भी हलचल केवल घनाभाव से न तो गिरती, न अटकती था निम्तेज दी
होती है। इसका मतलव यह नहीं कि कोई भी हलचल संसार में 'दिल्ता रुपयों के हीचत सकती है |चल्कि उसका अयथ यह जरूर