पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/१९३

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द्दिण भ्रफ्तीकाकासत्याग्रह

श्ध्म

हैकि जहाँ पर सच्चे संचाक दवोतेहैं,यहाँ रुपया अपने भाप

चला आता है। इसके विपरोत मेरा यह भी अलुभव हैकि जिस संस्था को खूब धन मिल जाता हैउसकी अवनति उसी समवे स

यहएकसिद्धान्द शुरूहो ज्ञातीहैइसलिएमेरेअनुभव सेमेंने

करकेउसके सह भी स्थिरकरलियाहैकिवहुत-सा घनइकट्ठा

से किसी सार्वजनिक संस्था का संचालन करना पाप है यह कहते हुए मेरी हिम्मत नहीं पढ़ती, इसलिए अनुचित है पी

कहता हूँ।सावजनिक सस्या का कोष तो जनता ही है। जदाँतक

जनता चाहे तभी तक ऐसी संस्था को जीवित रहना चाहिएहैं

कोष इकट्ठा करके उसके सूद पर चल्लनेवाल्ली संस्थायें सावेजर्निक

हैं।सार्वजनिक नहींरहती। वेंसवतत्त्रऔर स्वामीचन जाती टीका-टिप्पणो के आगे वे सिर नहीं मुकाती। सूद परे चल्नेवाल्ली कितनी ही सॉसारिक तथा पारमार्यिक संस्थाओं

जो चुराइयाँघुसबैठोहैं,उन्हेंयहाँपरलिखने कीआवश्यकता नहीं। वह तो लगभग सयसिद्ध जैसी दी वात

है।..._.

फिरहममूल विषयकोलें। छोटीछोटीतुच्छ दज्ीततथा

मामूली वातों पर मुक्ताचीनी करने का ठेक्ना केवल वकीलों ने

या अग्नेजी पढ़े-लिखे सुधारकों ने नहीं लेरक्खा है.। मैंनेतो

यह देखा हैकि दक्तिण अफ्रोका केअपद भारतीय भी चहुंते

सह्रमदलील करसकतेहैं।कितनों हीनेघद दल्लील दूंढीकि

पहलेखूबोंकानूनकेरदहोतेहीथियेटरमेंली गयी प्रतिहायें

भी रह हो गयीं। कमजोरी के कारण कितनों ही ने इस

दल्नीज्ष काआश्रय लिया। यहनहीं कह्य जासकता कि दलीश

विल्कृत्न दी व्यर्थ थी।पर जो लोग उस कानून का प्रतिक्ार सममकर नहीं, वल्कि उमके अन्दर छिपे हुए तत्त्व केखिलाफ

ड़रहेथे,उनपरतोयहदलीलकोईअसर नहीं कर सकती