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अहमद मुहम्मद काछुलिया

के मुतव्लियों में वे भीएक थे। पर साथ ही थे हिन्दू और मुसलमानों के लिए समदर्शी थे । मुझे ऐसा एक भो प्रसंग याद नहीं आता कि जब उन्होंने धर्मान्ध घनकर हिन्दुओं के खित्ाफ फिसी वात की खींचातानी की हो। थे बविज्ककु्त निडर और

निष्पक्ष थे।इसलिए मौके पर हिन्दूऔर मुप्तल्मानों कोभो उनका दोप दिखाते समय उन्हें जरा भी संकोच न होता था। उनकी सादगी और तिरमसिमानता अनुऋरणीय थी। उनके साथ

सेरा जो वरसो का सम्बन्ध रहा, उससे मुमे यह दृद विश्वास

हो चुका हैकि स्वर्गीय अहमद मुहम्मद काछलिया जैसा पुरुष

कौम को फिर मिलना कठिन है। प्रिदोरिया की सभा मेंबोलनेवाल्ों में एक पुरुष यह भी थे। उन्द्दींने बहुत ही छोटा भाषण किया। वे बोजे-'इस खूनी कानून

को हरएक हिन्दुस्तानी जानता है। उसका अथ हम सब जानते

'हैं। मि० हास्किन का भाषण मैंने खूब ध्यान लगाकर सुना। आपने भी सुना। मुझपर तो उसका परिणाम यही हुआ हैकि मैंअपनी प्रतिज्ञा परऔर भी दृढ़ हो गया हूँ। ट्रान्सवाज्ञ सरकार की ताकत को हम जानते हैं। पर इस खूनी कामून सेऔर अधिक किस वात का डर सरकार हमें बता सकती है! जेल

भेजेगी, जायदाद वेंच देगी, हमें देश से बाहर कर देगी-फाँसी पर लटका देगी। यह सब हम बरदाश्त कर सकते हैं ! पर इस कानून के आगे सिर नहीं कुक सकते। मेंदेखता था कि यह सब बोलते हुए अहमद मुहम्मद्‌ काछुक्तिया बड़े उत्तेजित होते

जा रहे थे |उनका चेहरा काल हो रहा

था। सिर और गदंन की

“शो जोश के मारे बाहर उसड़ आयी थी । बदन कॉप रहा था।

अपने दाहिने द्वाथ की उँगलियाँ गदेत पर रखकर वे गरमे-+क खुदा की कसम खाकर कह्दता हूँ कि मेंकत्ल हो जाऊँगा ३