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दतिण अ्रफ्रीवा का सत्याग्रह

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पर इस कानून के आगे कप्ती अपना सर नहीं मुकाऊँगा। और

मैंचाहता हूँ कि यह सभा भी यद्दी निश्चय करे।” यह कहकर

बह बैठ गये | जब उन्होंने गदेनपरहाथ रकखा तथ मंच पर बेठे हुए कितने ही लोगोंके मुँहपर मुसकराहट दिखायी दी । मुझेयाद हैकि मैं भीउसमें

था। जितने जोर के साथ फाछलिया सेठ ने

ये शब्द क्द्दे येउतना जोर अपनी कृति में वेदिखा सकेंगे या

नहीं इस वात का मुमेजरा सन्देह था। पर जव-जब वह सन्देंदवाली वात मुझ्ते याद आती है.तो आज यह लिखते समय भी

मुझे अपने ऊपर लब्जा भालूम होती है। इस महान्‌ युद्ध में

जिन बहुत से आदप्तियों नेअपनी प्रतिज्ञा छःअक्षरशः पालन

किया था, काछलिया सेठ उत्तमें अम्रगए्य थे। मैंनेकभी उन्हें

अपना रंग पलटते हुए नहीं देखा ।

सभा ने तो इस भाषण का करतत्न-ध्वनि से स्वागत किया। मेरी अपेक्षा अन्य सभासद उन्हें इससमय वहुत अधिक जानते थे, क्योंकि उनमें सेअधिकांश को इस 'गुद॒ढ़ी के ताल” से व्यक्तितद परिचय भी था। वे जानते थे कि काहछलियां जो

करना चाहते हैं, वही करते हैंऔर जो कहते हैं उसे अवश्य

ही पूरा करते हैं।और भी कई जोशीले माषण हुए। काछलिया सेठ के भाषण फो उनमें से इसीलिए छाँट जिया कि उनकी वाद

की कृति से उनका यह भाषण भविष्यवाणी सावित हुआ।

लोशीते भाषणों के करनेवाले सभी अन्त तक॑ नहीं टिक सके ।

इस पुरुष-सिह्द की मृत्यु अपने देश-भाइयों को सेवा करवे-करते ही सब्‌ १६६८ में (१) अर्थात्‌ यह युद्ध खतम होने पर चार

सात वाद, हुई।

उनका एक और स्मरण है। उसे और कहीं नहीं दिया जा

. सकता, इसलिए यहीं पर लिख देता हूँ। पाठक आगे चलकर

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