पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२०२

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पहली फूट

तो उसे मी सद्द लें ।अगर चद् मार भी न सह सकता हो तो

वहाँसे चल दे। अगर पुलिस पकड़े तो खुशी से अपनेको उसे सौंप दे। अगर कहीं जोह्ान्सवर्ग जेसी जगह हो वो स्वयं मुझे खबर फरे। अन्य स्थानों पर अपने-अपने स्थानीय नेताओं को

खबर करे, और वेजैसा कहें उसी अकार करे । हरएक टुकड़ी

का एक-एक मुखिया था। भाज्ञा यह थी कि मुखिया के हुक्म के अनुसार मातहत पहरेदार पहरा दें हे

कौम के लिए इस किस्म का यह पहला ही अनुभव था।

बारह साश्ष से अधिक उम्रवाले व्यक्ति कोही पहरेदार चुना जाता था। इसलिए बारद से लेकर अठारह साज्ञ तक की उम्र-

वाले कई लड़कों नेअपने नाम लिखाये थे। पर ऐसे व्यक्ति को

कभी नहीं लिया जाता था, जिसे स्थानीय कार्यकर्ता न पहचानते हों । इतनी सावधानी लेने पर भी हरएक सभा मेंऔर अन्य रीति से भी लोगों सेयह कद दिया गया था कि जो अपनी आर्थिक द्वानि का भय अथवा अन्य किसी कारण से परवाना लेना तो चाहते हों पर पहरों केभय के कारण ऐसा न कर सकते हों, उनके साथ नेता एक स्वयं-सेवक कर देंगेजो उन्हें ठेठ

एशियाटिक आफिस में छोड़ आवेगा, और उनका काम होते ही फिर उन्हें खथंसेवकों के पहरे के बाहर लाकर छोड़ देगा। कितनों ही ने इससे लाभ उठाया भी था। हरएक स्थाव पर

स्वरय॑सेवकों ने बड़ी ही उमंग के साथ काम किया । वे हमेशा अपने काम में तपर और जागरूक रहते |सामान्यतः यह कहा

जा सकता हैकि पुलिस नेउन लोगों को अधिऋ सताया। जहाँ कहीं थोड़ी बहुत तकल्नीफ दी वहाँ स्वयंसेवकों ने उसे सह लिया। इस कास मेंस्वयंसेवकोंनेहास्य-विनोद से भी खूब काम

किया । कसी-कभी तो इसमें पुलिस भी शरीक हो जाती।