पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२०४

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श्ष्र

पहली फूट

स्थिति के कारण परवाने लेनेवाल्ों केनाम प्रकट होने का

उर इन दो बातों का परिणाम बहुत गदरा हुआ मेंऐसे एक भी आदमी को नहीं जानता जो सानता हो कि खूनी कानून के

सामने सिर क्ुकाना अच्छी बात है। जो लोग परवाने लेने के लिए गये थे केवल इसलिए गये कि वेकष्ट और आर्थिक नुकसान चरदाश्त नहीं कर सकत थे । इसलिए उन्हें वहाँ जाते शम भी

मालूम होती थी।

अन्त मेंचढ़े व्यापारवाल्े भारतीयों को एक तरफ से शर्म ओर दूसरी ओर से अपने व्यापार को द्वानि पहुँचने का डर इन

दो कठिनाइयों मे से वाहर निकलने का राप्त्ता कितने ही भारतीय

अगुश्राओं नेहूढद्वी तोनिकाला |एशियाटिक आफिस मेंजाकर उन्होंने इस बात का प्रबन्ध कर दिया कि वहाँका एक अधिकारी

रात के नौ दस बजे के बाद एक सकान पर जाकर उनको परवाने

देदे |उनको यह विश्वास था कि इस प्रअन्ध के कारण कितने ही समय तक लोगों को यह पता तक नहीं लगेगा कि फन्ञॉ-फतोँ

आदमियों ने खूनी कानून को मान लिया है| दूसरे, उन्होंने यह

भी सोचा कि चूँकिवे अगुभा थे, इसलिए उन्हें पेख-देखकर दुसरे भी कानून को मान लेंगे। इसस झौर कुछ नहीं तो कम से

कम्त ज्णा का भार तो बँढ जायगा। बाद में अगर पोत् खुक्त गयी

तो भी चिन्ता की बात नहीं । पर स्वयंसेवकों का प्रबन्ध इतना अच्छा था कि पत्षनपत्ञ की खबर हम सबको मित्र जाया करती थी । ठेठ एशियाटिक आफिस मेंभी तो एक ऐसा व्यक्ति अवश्य था जो सत्याप्रद्दियों

को ऐसी खबरें फौरन भेज दिया करता । दूसरे, ऐसे भी कई

लोग थे जो खयं॑ तो ऊमन्नोर थे,पर यह नहीं देख सकते थे कि लनमें से बड़े-चढ़े लोग इस कानून के सामने सर कुक दें । वे