दक्तिण श्रफ्रौका का सत्याग्रह
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भारवीयों मेंभी वड़ी हलचल मच गयी | जिस रामसुन्दर परिहत
को केपल बर्मिस्टन के त्ञोग दो जानते थे, उसे अब क्षण भर में
सारे दक्तिण अफ्रोका के लोग जानने जग गये |एक मद्दाद् पुरुष का मामला चलते समय जिस प्रकार सबकी नजर वहीं दौडती हैठीक उसी तरह रामसुन्दर परिड़त की ओर सबका ध्यान हाक्ृष्ट हुआ | शाति-रक्षा के लिए किसो प्रकार की तेयारी करने
की आवश्यकता नहीं थी |तथापि सरकार नेअपनी ओर से चह इन्तजाम भी कर लिया था। अदात्षत मेंभी रामसुन्दर का
चैसा ही आदर-सत्कार किया गया जैसा कि कौम के प्रतिनिधि २ एक असामान्य अपराधी का होना चाहिए था। अदालत
उत्सुक भारतीयों से खचाख्वच भर गयी थी। रामसुन्दर को एक
भह्दीने की सादी केदको सजा हुई। उसे जोद्दान्सगंत्र की जेल में
रक्खा गया। उसको यूरोपियन बार्ड मे अलग एड कमरा दिया गया था। उससे मिलने-जुलने मेंज़रा भी कठिनाई नहीं होती थी उसका खाना बाहर से भेजा जाता था कौर भारतीय 'उप्तकेलिए
नित्य नये अच्छे-अच्छे पफबान पकाकर भेजते ये। चह जिस
चात की इच्छा करता, वह फौरन ही पूरी कर दी जाती। फौम ने उसका जेल-दिन बढ़ी धूमधाम से मनाया । कोई हताश नहीं
हा। उत्साह और भी बढ गया। सैकड़ों जेल जाने के लिए
र थे। एशियाटिक आफिस की आशा सफत्ञ न हुई।जर्मिस्टन
के भारतीय भी परवान लेने के लिए नहीं गये |इस सजा का फायदा कौम को ही हुआ । महोना खतम हुआ । रामसुन्दर
चूटे, भौर उन्हें बड़ी धूम-धाम से गाजे-वाजे के साथ जुलूस बना कर सभास्थान
पर ले गये । कई उत्साइप्रद भाषण हुए ।
पमसुन्दर को फूलों से ढक दिया ।खय॑सेवकों ने उनके सत्कार में उनकी दावत की । सैकड़ों भारतोय अपने सन मेंकहने लगे