“३०४३
- पहला सत्याग्रह केदी
“कि “अरे, हम भी गिरफ्तार हो जाते तो कितना आनंद आता !”
-और रामसुन्दर पण्डित से मधुर ई्ां करने लगे।
पर रामसुन्द्र कड़वी बादाम साबित हुए । उनका जोश
नक्ूठी सती का सा था। एक मद्दीने के पहले तो जेल से निकत्ष -ही नहीं सकते थे,क्योंकि वे अनायास पकड़े गये थे। जेब में उन्होंने इतना ऐशोआराम किया कि बाहर से भी अधिक। फिर भी स्वच्छुन्दी और व्यसनी आदमी जेल के एकांतवास को और
अनेक प्रकार के खान-पान के होते हुए भी बहाँके संयम को क॒दापि घदाश्त नही कर सकता ।यही दात्न रामसुन्द्र परिडत
का हुआ | फौस और अधिकारियों से मनमानी सेवा लेने पर भी उन्हेंजेल कड़बी मालूम हुई और उन्होंने ट्रान्सवात्न और युद्ध दोनों को अन्तिम नमस्कार करके अपना रास्ता लिया । हरएक
कौम मेंखिलाड़ी तो रहते ही हैं। बद्दी दा युद्धोंकाभीहोता है। ब्लोग रामसुन्द्र कोअच्छी तरह जानते थे। तथापि ऐसे भी आदसी कभी-कभी काम देते हैं, यहसमझकर उन्होंने राम-
सुन्दर का छिपा हुआ इतिहास उस डी पोत्न खुजने पर भी कई दिनों तक नहीं सुनाया थ।। पीछे से मुझे मालूम हुआ कि रामसुन्द्र
तो अपन्ता गिरमिठ पूरा किये बिना ही भागा हुआ गिरमिटिये था | उसके गिरमिटिया होने की बात को मेंघृणा से नहीं लिख
रहा हूँ। गिरमिदिया होना कोई ऐव नहीं है | पाठक अगि चलकर देखेंगे कि युद्ध की स्दी शोभा बढ़ानेवाले तो गिरमिटिये
ही थे। युद्ध फी जीत मेंभी उन्हीं का सबसे बढ़ा हिल््सा था | पर
गिरमिट से भाग निकलना अवश्य ही एक दोष है।
- . रामपुन्दर का यह इतिहास मैंनेउसका ऐब बताने के हैतु से
-नहों, बल्कि उसमें जो रहस्य हैवह दिखाने के हेतु सेत्िखा
है । हर पक पविन्न आन्दोलन या. युद्ध के संचालकों को चाहिए