पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दक्षिण श्रफ्मीका या सत्याग्रह

दर

कि वेशुद्ध मनुष्यों को ही उसमें शामिल करें। तथापि भादमी कितना ही सावधान क्यों न हो अशुद्ध मनुष्य को बिलकुल रोड़

देना असम्भव है | फिर भी यदि संचाज्फ निढर और सच्चे हों

वो अन्ञानत, शशुद्ध आदमियों के घुम आने पर भी युद्ध रो अन्त मेंनुकमान नहीं पहुँच सफता । रामसुन्द्र परिडत की पोज

खुलते ही उसकी कोई कौमत नहीं रही। यह तो वेचारा अब रामसुन्दर परिहत नहीं कोरा रामसुन्दर द्वीरह गया। कौम उसे

भूल गयी। पर युद्ध को तो उससे शक्ति दी मिल्री। युद्ध के लिए मित्षी हुईजेल वहखाते नहीं गयी। उसके मेत्न जमे से कौम में

जो नवीन शक्ति आयी बह तो कायम ही रही। बल्कि उसके उदाहरण का भी यही असर हुआ ऊि अन्य फितने ही कमजोर

आदमी अपने आप युद्ध से'अलग होगये। भौर भी कितने हो

ऐसे उदाहरण हुए। पर मैं यद्वॉपर उन सबका इतिद्वास देना नहीं चाहता, क्योंकि उससे कोई फायदा नहीं है। कौम की मजबूती या कमजोरी पाठकों से छिपी नही रह सकती | इसलिए यहाँवर मैंयह भी कह देना चाहता हूँरामसुन्दर जैसे केवल पे ही नहींथे। पर मैंने तो यह देखाकि सभी रामसुन्रों ने आन्दोलन की सेवा ही की ।

पाठक राममुन्दर को दोष न दें। इस संसा में मनुष् यमात्र अपूरण है। जब हम किसी मनुष्य में अधिक अपूर्र णंता देखते हैं) तब हम उसकी ओर अंगुली दिखाते हैं। पर सच पूछा जाय तो”

यह भूत है। रामसुन्दर जानबूक कर दुर्वक्ष नहीं बना था। मशुष्य अपने स्वभाव की स्थिति को वद॒क्ञ सकता हैउसको अपने

वश में चुद हद तक कर सकता है पर उसे जढ़ से फ्रौन बदल

सकता है? जगतूकर्ता ने मनुष्य को यह स्वतन्त्रता नहीं देरक्‍्सी-

है। शेर अगर अपने चमड़े की विचित्रता कोबदल सकता हीः