दइतिय अफ्रीका फा सत्याग्रह
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'कि युद्ध केसाधनों में'हण्हियन ओपीतियन!ं भी एक बड़ा
उपयोगी और प्रवत्न साधन था । हे युद्ध की प्रगति तथा अनुभव ज्ञान के कारण कौम मेंजसे-
'जैसे परिवर्तन द्ोते गये, ठीक उसी प्रकार 'इर्हियन ओपीनियन मेंभी हुए। इस पत्र मे पहले विज्ञापन लिये जाते थे। छापाखाने
मेंबाहर की छपाई का काम भी किया जाता या । मैंने देखा कि
इन दोनों कार्मो में अच्छे-से-अच्छे आदूमियों फो रुके रहना पड़ता है। हमेशा ऐसे भी घमंसकट पैदा होते कि यदि विज्ञापन लेना ही हैतो कौन-से लिये जावें भौर कौन-से न लिये जानें।
फिर यदि यह तथ द्वोकि अमुक विज्ञापन न लिया जाय पर
विज्ञापनदाता फौम फा कोई अगुश्ना हो तो इस दर से कि उसका दिल न दुःख जाय विज्ञापन जबरदस्ती लेना पढ़ता था। इस विभाग के बन््दोवत्त के लिए भो एक अच्छे से अच्छे |
आदसी को अपना समय खराब करना पढ़ता, खुशामदे करनी
पढ़ती, सो अक्षग ही। दूसरे यह मी खयात्न हुआ कि पत्र यदि
घन के लिए नहीं बल्कि कौम को सेचा के लिए ही चलाया जां रहा है, तो बह सेवा जबदंस्ती से नहीं बल्कि उसकी इच्छा-
मुसार ही होनी चाहिए। कौम को इस इच्छा का सबूत तो यही
होसकता हैकि जितनी घटो हो रही हैउसे वह अच्छी संख्या
मेंप्रादक होकर दूर करदे |तौसरे, यह भी विचार किया कि पत्र फा खर्च निकालने के उद्देश्य से थोड़े से व्यापारियों के सेवामाव
को जाप्रत करके पन्न मेंअपना विज्ञापन देने के क्षिण समझाने
की अपेक्षा जनता को पत्र के ग्राहक होने के लिए सममाना
जनता और अगुश्नाश्रों के ज्िए भी बढ़ी द्ितकर शिक्षा दोगी।
विचार स्थिर होते हो फौरन उसपर अमत्त करना भी शुरू किया। अत यह हुआ कि जो लोग विज्ञापन के संमट मेंपढ़े हुए थे