पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२१४

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टुरिडियन ओरोपीनियन!

वे ही अब अखपार को अच्छा बनाने के उद्योग में लगे |कौम

फौरन समझ गयी कि 'इस्डियन ओपीनियन तो उसका पत्र है ओऔर उसे चक्नाने की जिम्मेद्री भी उसीके सिर पर है। हम सब कार्यकर्ता निश्चिन्त हो गये। कौम अगर पत्र माँगे तो अब

केवल उसके लिए पूरी-पूरो मेहनत करने की चिन्ता ही हमें

करनी थी । हर किसी भारतीय का द्वाथ पक्रड कर उसे इंडियन ओपीनियन! लेने के लिए कहने मेंहमारे लिए अब किसी सोचविचार की जरुरत न रही । बल्कि अब तो यह करना

हम अपना घर्म समझने छग गये। 'हरिहयत ओपीनियन का आंतविक वल और स्वरूप सी वदक् गया। वह एक महाशक्ति बन गया । उसको साधारण ग्राहक-संख्या १९००-९४५०० तक

थी। पर वह अच दिन-ब-दिन बढ़ने लगी। उसका वार्षिक चन्दा

_ पढ़ाना पढ़ा था। तथापि जब लड़ाई ने उम्र रूप घारण किया उस समय ३४०० तक प्राहक संख्या वंढ़ गयी। उस्तका पाठक

चगे २०००० से अविक न होगा | पर उममें भी ३००० से झधिक प्रतियों का विकना अआश्रयेत्ननक प्रचार कहा जा सकता

है। कौम नेउस समय इस पत्र को यहाँ तक अपना लिया था

फि यदि जोहान्सवर्ग में चह नियत समय पर न पहुंच पाता तो

मुझ पर शिकायतों की कड़ी लग जातो। बह प्रायः रविवार की सुबह को जोहान्सबर्ग पहुँच ज्ञाता था। मुझे याद है कि पत्र पहुँचते ही कितने ही लोग अपना काम अलग रखकर पहले उसका गुजराती विभाग पढ़ जाते॥ एक मनुष्य पढ़वा और पाँच

_ परचीस आदमी उसके आसपास बेठ कर सुनते | हम लोग

गरीब ठहरे, इसलिए कितने ही लोग इस पत्र को आपस में चन्दा करके भी मेंगात थे |

४ प्रेस में बाहर का कास न क्ेने के विषय में भी में