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दत्तिण श्रफ्रीका का सत्याग्रह
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लिख चुका हूँ। उसे बन्द करने के कारण भी प्रायः वेदी थेजो
विज्ञापनों केलिए बताये गये हैं । बाहर को छपाई का काम बन्द करने पर कम्पोजीटरों काजो समय बचा उसे हमने पुस्तक प्रकाशित करने की ओर लगाया। कौम इस वात जानती थी कि इसमे हमारा देतु धन-संचय कदापि नथा। पुस्तवें बतौर युद्ध की सहायता के ही छापी जाती थीं इसलिए
उनकी भी अच्छी बिक्री होती थी। इस प्रकार पत्र और प्रेस
अपना काम किया। और जैसे-जेंसे कौम दोनो ने युद्ध में मे सत्याग्रह की जड जमती गयी, ठीक उसी परिमाण मेंसत्याप्रह
की दृष्टि से पत्र और छापाखाने मेंभी प्रगति होती जा रही है यह स्पष्टवया मालूम दोगसकता था |