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दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह

स्त्‌ः

तायदू एक सामान्य व्यापारी ये । उन्होंन कोई रेशिवा पाठ्शात्ा मेंनहीं पायी । पर उनका अनुभव ज्ञान बईं ऊँचे दे

का था। भं्रेजी अच्छी तरह बोल और लिख मी सकते है. उसमें वेअवश्य गलतियाँ करते हालाँकि भाषाशास्र की दृष्टि से

थे। वार्मिल भाषा का ज्ञान सी अनुभव से ही प्राप्त किया था!

हिल्दुसानी अच्छी तरह समझा लेते और बोल भी सर्वर थे।

हेलगूकाभी कुछ ज्ञान रखते थे। पर हिन्दी और तेलषगू

लिपियो का ज्ञात उन्हें जरा भी न था। सारीशस की भावी भी,-जिसका नाम फ्रीओल हैऔर जो अपभ्रष्ट फ्रेंच कही

सकती हैउन्हेंवहुत अच्छी तरह अबगत थी। इतनी भाषाओं का ज्ञान दत्तिण अप्रीका में कोई आश्रयेजनक वात न थी |

दक्तिण झक्कीका मेंआपको ऐसे सैकड़ों भारतीय मिलेंगे किरे इन सभी आषाओं का मामूली ज्ञान है।और इन सबके अतिरिक

हवशियों की भाषा का ज्ञान तो उन्हें अवश्य द्वी होगा है। ईन सभी भाषाओं का ज्ञान वे अनायास प्राप्त करते हैंऔर कर भी

सकते हैं।इसका कारण मैंनेयह देखा कि विदेशी भाषा के द्वीस

शित्ता प्राप्त करते करते उनके दिमाग थके हुए नहीं होते |उसकी

स्मरण-शक्ति तोन्न द्ोती है। उत मिन्ननमिन्न भाषा-भाषी के साथ वोल-बोलकर और अवलोकन फरके ही वेउन भाषा

का ज्ञान प्राप्त कर लेते हें। इससे उनके दिमाग को जरा सी केंट

नहीं होता, वल्क्रि इस रोचक व्यायाम के वारण उनकी बुद्धि की स्वाभाविक विकास ही होता है। यही ह्वान्न थंवी नायडू का ही

उनकी बुद्धिभी वी तीज यो। नवीन प्रश्नों को वे, बढ़ी फुर्दी के साथ मम हेंदे । उनठी हाजिर जवादी आश्वयेजनक थी ।

भारत रूपी नहीं आये ये पर फिर भीउनका उस पर भअंगावे प्रेम था । सद्देशाभिमान उनकी नस-मस मेंभरा हुआ था।