पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२२०

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र्शर

पकड़-धकड़

उनकी हृद्ठता चेहरे पर ही चित्रित था। उसका शरीर बडा मज्ञ-

बूत भौर फसा हुआ था। मेहनत से कभी थज्ते हो न थे। कुर्सी पर बेंठकर नेतापत फरना हो तो उस पद की भी शोभा चढ़ा दें। पर साथ ही हरकारे का काम भी उतनी ही म्वाभातिक रीति से

थे कर सकते थे। सिर पर बोका उठाकर वाज़ार से निऋलने में घंच्री नायदू जरा भी न शरमाते थे। मेहनत के समय ने

रात देखे न दिन | कौम के लिए अपने सर्वत्र ही आहुति देने के लिए हर किसी के साथ प्रतिस्पधों कर सकते थे । अगर थंत्रो नायडू हद्‌ से ज्यादा साहसी न होते और उत्तमें क्रोव च॑ होता तो आज वह बोर पुरुष ट्रान्सवाल में काछुलिया की अनु-

पस्थिति मेंआमानी से कौम का नेतृत्व मद्रण कर सकता था।

ट्रान्सबाल के युद्ध के अन्त तक उसके क्रोध का कोई विपरीत परिणाम नहीं हुआ था, चल्कि तबतक उनके अमूल्य गुण

जवाहिरों के मुआफिक्न चमक रदे थे। पर वाद में मेने देखा कि उनका क्रोध और साहस प्रवत्ष शत्रु सात्रित हुए, और उन्द्दोने उनऊे गुणों को छिपा दिया | पर कुड्ठ भी हो, दक्तिण

अफ्रोका के सत्याग्रह युद्ध मेंथत्री नायडू का नाम हमेशा पहले ही वर्ग में रहेगा। »

हम सबको अदालत में एक साथ ही हाजिर होता था। पर सबके मुकदमे अलग अलग चलाये गये थे | हमे किसीकों अपना

चचाद तो फरना दी न था। सब अपना-अपना अपराध छुबूल करनेवाले थे । मेंने अदालत में अपना कोई लिखित बयान भी ेश नहीं किया | केवल - इसी भावाथ के कुछ शब्द्र कहे कि विचारपुर्षंक और अपना घ॒र्मंसमझकर हो में'इस खूनी कानून -का सामना कर रहा हूँ। इसके लिए मुके जोलजा मिलेगी उसे

सहन करना मेंअपना सम्मोन समझूँगा। दो महीन की सादी