पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२२२

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पकड़-पकढ़

पुसीबतें आदें, उन्हें दुःख नहीं, सुख समझना चाहिए, उसका

ग़सना करते हुए जञानोमाल भी अपण करदेना यही तो सत्याग्रह

ही पूरुता है!यह सब ज्ञान कहाँ चल्ला गया ?” बस, यह विचार

आ्राते ही मैंफिर होश मेंआया और अपनी मूलंता पर आप ही

से क्ञगा |अब दूसरे भाइयों को कैसी सजा दी जायगी, उन्‍हें

परे साथ ही रझखेंगे याअज्षण' आदि ज्यवद्वारिक विचारों मेंमैं'

डड़ा , इस प्रकार गोते दगा ही रहा था कि द्रबाजा खुल्ा।* पुलिस अधिकारी ने मुझे अपने पीछे आने के लिए कहा।

मेंरवाना हुआ कि मुझे आये करके वह पीछे हो गया और जेल्न की बन्द गाड़ी के पास मुझे के गया और उसमें बैठने के लिए.

कह्दा । मेरे बेठते ही गाड़ी जोहान्सवर्ग की जेल के तरफ बढ़ी !

जेज्न मेंआमे पर मेरे कपड़े निकलवाये। में जानता था किः जेल मेंक्रैंदियों को नंगा किया जाता है। सचने यह निश्चय कर. किया था कि जहाँ तक जेज्ञ के नियत व्यक्तित अपमान

करनेवाले अथवा धम के खिल्लाफ न हों बहाँतक उनका स्वेच्छासे पाजषन किया जाय | हमने इसे सत्याग्रही का धर्म समझा

था। पहनने के लिए जो कपड़े मिल्ले वे बहुत मेले थे । उन्हें पहनते समय तो ज़रा भी अच्छा न लगा |खूब मन को रोफना

पड़ा भौर बढ़ा ही दुःख हुआ | पर यह सोचकर कि अभी तो

और भी कितनी ही अखच्छुता को वर्दाशत करना होगा, चित्तः

को थामा |नाम-धाम लिखकर मुझे एक विशाल कमरे मेंले गये | कुछ देर तक वहाँ रक्खा होगा किइतने द्वी में मेरे साथी भी

इँसते-हँस्ते और बातचीत करते हुए आ पहुँचे भर मेरे बाद नका मुकदमा केसे चला आदि सब हाज्न उन्होंने कह सुनाया। मेरा मुकदमा खतस दोने पर छ्ोगों ने काले मंडे हाथों में ले केः कर एक जुलूस निकाला । कोई उत्तेजित भी हो गये थे | पुलिस