पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२२३

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'चिण अफ्रीका का सत्यामद

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आयी, दो चार को मार भी पढ़ी, आदि द्वाल सुने | दैम सकी 'एक ही जेल और एक ही कमरे मेंरक्‍्खा गया, इसलिए हम सर बडे प्रसन्न हुए।

छः बने हमारे कमरे का दरवाज़ा बन्द कर दिया गयीं ।

वहाँ की जेल की कोटड्ियों के द्रबाजों में लोहे की छ़े

होती । ठे8 ऊपर दीवाल में एक मरोखा हवा के लिए ख्खा नाता है। इसलिए हमें तो [यद्दी मालूम हुआ कि हमे

भानों सन्दूक में बन्द हैं। अधिकारियों नेजो आदर सती

शमसुन्दर का किया था बह हमारा नहीं किया। पर ईसे कोई आश्चर्य की वात भी नहीं था | रामपुन्द्र पहला

कैदी था। इसलिए अधिकारियों कोइस वात का खयाल | था कि उसके साथ किस प्रकार का बर्ताव किया जाय । हमारी संख्या तो पहले ही से काफी थी ।सरकार और भी लोगों धरहि

पकडना चाहती थी। इसलिए हमें दवशी जेलखाने में रखा गया। दक्षिण अफ्रीका में दोविभाग ही द्वोषे दें.गोरा

काला (हुबशी )। भारतीय क्ैंदी कीगिनती भी दबशियों के

है।मरेसाथियोंकोभी मेरे जितनीही विभागमेंकी जाती सादी क्लेद की सजा हुई थी । दिन निकलते ही इमें वह मालूम हुआ कि सादी क्रेदवाल्ो कोअपनी हो पोशाक पहनने फा हक़ रहता है। और अगर बह उसे न पहना चाहें वो सांदी जैदवालों के किए जोखास पोशाक रहती है वह उन्हें दी जाती है। ह_म सबने यही निश्चय किया कि घर की अपनी पोशाक यहाँ

पहनना तो ठीक नहीं । अठः जेल की होपोशाक पहनती चाहिए । अधिकारियों फो हमने इस बात की सूचना भी फरे

दी। इसक्षिए हमें सादी क्ेदवाल्े क्रैदियों की पोशाक दी गयी।

पर इस प्रकार केसादी फ़ैदवाते क़ैदी दक्िण अफ्रीका में सेकड़ों