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समभौते का विरोध--मुझपर हमला

उसका विरोध भी करते थे । पर इस भरढल के सभी सलन

मेरी दक्ीें सुन क्षेने परसमझौते का यथार्थ स्वरूप समम गये थे। पर एक शक तो सबके दिद्न मेंबराबर बना रहा था। “अगर जनरल स्मट्स विश्वा सघात करें तो ! खूनी कानून को

भत्ते दी बह कार्य मेंपरिणत न करें। पर उसका भूत वो हमारे सिर पर हमेशा सवार रहेगा न) और यदि हम स्वेच्छापूवेक परवाने क्षेकर अपने हाथ काट डालें, तब्र तो उसके प्रतिकार

के लिए हमारे पाप्त जो एक मात्र सद्दान्‌ शल्ष है,उसे भीअपने हाथों से गँवा वैठेंगे। यद तो जान-वूसकर दुश्मन की जात में अपने को फँसा छेता है । सच्चा सममौता तो वह कह्दा जा

सकता हैकि जब पहले तो खूनी कानून रद होजाय और तब हम लोग स्वेच्छापूवंक परवाने लें ।इस दलीज् से में चढ़ा खुश हुआ। दल्लील फरनेवाज्ों की तीह्षण बुद्धि और उनकी द्विम्मत देखकर मुमे वड़ा अभिमान हुआ | और मेंने दिल्त मेंकहा कि सत्यामद्दी ऐसे ही होने चाहिएँ । इसके उत्तर मेंमैंने कहा-“झापकी दलील बढ़िया है, विचारणीय है। खूनी कानून रद

होने पर ही हम स्वेच्छापूक परवाने रेंगे। इससे बढ़िया और क्‍या हो सकता है पर मेंइसे सममोते का क्क्षण नहीं कदृदता।

सममौते का तो अथे ही यह हैकि जहाँ सिद्धान्त को वाघा न पहुँचती हो, वहाँ दोनों पक्ष दे-लेकर कगड़ा निपटा लें। हमारा सिद्धान्त यह है कि खूनी कानून के डर से तो इम चह काये भी न करें जिसे साधारण द्वा्त मेंकरने केलिए हमें कोई उम्र न

हो। बस इस सिद्धान्त का अवलंबन हमें करना है। सरकार

का सिद्धान्त यह हैकि किसी भूठे बद्दाने सेभारतीय ट्रान्सवाल

में प्रवेश व पा सके इसलिए ट्रान्सवाल के अधिकाश भारतीय

ऐसे परवाने छे-लें जिनमें निशानियोँ दज की हुई होती हैं तथा