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समभौते का विरेध--मुभपर हमला
मैंने भाषणसमाप्तकिया कि एक पठान भाई खड़े हुए और उन्होंने मुक परसवाज्ञों कीकड़ी लगादो।
कि
« “इस समभौते के अनुसार हमेंअपनी दसों अँगुर्तियों की छाप देनी पढ़ेगी न १” "हाँ, और नहीं भी | मेरी तो यही सल्लाह है कि सभी दसों अँगुलियों की निशानी देदें। पर जिन्हें यह करने मेंधार्मिक आपत्ति हो अथवा अपमान मालूम होता हो वेअगर न भी दें , तो कोई हानि नहीं'।” “आप खुद क्या करे?” - “मैं तो पहिले ही से अपनी द्सों अँगुलियों की छाप देने का निश्चय कर चुका हूँ। यह तो मुझ से कदापि नहीं हो सकता कि जो मैंन कहूँ वद्द करने की सल्लाह आपको दूँ।” . “आपततो इन छापों के विषय में बहुत लिखतेये। यह
सिखानेवाले भी तो आप ही हैंकि ऐसी निशानी तो केवल मुजरिसों
से ही क्षी जाती है। आप यह भी सिखाया करते थे कि यह युद्ध दूस अँगुलियों का है। वे सब बातें आज कहाँ गयीं ?ै” “दस अंगुलियोंकेविषय मेंमेने पद्िल जो कुछ भी लिखा
हैउसपर मैंआज्ञ भी दृद् हूँ। यद्द बात तो मैंआज भी कहँँगा कि भारत मेंकेवल्न जुर्म करनेवाज्ी जातियों से दी दस ऑँगुलियों की निशानी ली जाती है। मेंने तोयह भी कद्दा हैऔर आज भी कहता हूँकि खूनी कानून के डर से अँगुज्ियों की का
क्या दृस््तखत देना भी पाप है। दस आँगुलियों वाली बात पर मेने
बहुत जोर दिया है और मेंजञानता हूँकि मैंने उसमे कोई वर
- नहीं की, भलाई ही की है। मेंने अनुभव से देखा कि कौम के
खूनो कानून की वारीकियों सममाने के बदले दस अँशर जैसी सोटी और नयी बात पर जोर देना पहुत आसान