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समझते का विरोध--मुभपर इमला

“दिलाता हूँकि बिना ही निशानियों के वे स्वेच्छापूवेक परवाने जे सकते हैँ | पर मुमे स्वीकार करना होगा कि जान लेने को धमकी मुझे नहीं रुचती |सेरा यह भी खयाक्ष हैकिकिसी की

जान लेने कीकसम खुदा का नाम लेकर नहीं ली भा सकती ।

इसलिए मेंतो यही समभू'गा कि इस भाई ने गुस्से के आवेश में

ही जान लेने कीकसम खाई है) वह इस कसम पर अमत्

करें यान करें | पर यह सममौता फरनेवाल्ों में एक मुझ्य

मनुष्य तथा कौस के सेवक की द्ेसियत से मेरा कत्तेव्य तो स्पष्ट है। मुमे अपनी अंगुलियों की छाप देने के लिए सबसे आगे

जाना चाहिए | परमेश्वर से भी मैं यही प्राथना करूँगा कि वह भुमे सबसे पहले यह काम करने का मौक़ा दे। मरना तो सबको

है। फिर रोग या अन्य किसी कारण से मरने की अपेक्षा में अपने किसी भाई के हाथों मरे तोइससे मुझे जरा भी दुःख “नहीं होसकता | और अगरमृत्यु केसमय भी में किसी पर क्रोध न करूँ अथवा मुमे मारनेवाले का ठष न करूँ तो मेरा भविष्य तो अवश्य सुधर जायगा। साथ ही मारनेवाते को भी

पीछे से विश्वास दो जायगा कि मेंनिर्दोष था ।” अब यह समझा देना ज़रूरी हे कि उपयुक्त प्रश्न क्‍यों

किये गये ? यद्यपि कानून को माननेवाले भारतीयों के प्रति फोई

छ्ेषभाव न रक्खा गया था, तथापि उस कार्य के विषय में तो

बहुत-कुछ और सो भी सरुत शब्दों मेंफह्ा और इंडियन ओपीनि-

यन मेंलिखा गया था । इसक्षिए उनका जीवन ज़रा भारी हो गया था। उन्हें यह जरा भी विश्वास न था कि कौम का इतता बढ़ा

७ द्विस्सा अपनी बात पर कायम रहेगा, और इतना शक्तिशांज्ी हो जायगा कि सरकार को समझौता करने की नौबत पहुँच जाय । पर जब १५० से भी अधिक सत्याप्रदी जेल चले गये और