पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दत्तिय भफीका का तल्ाग्रह रह सममौते की बातचीत होने लगी तव उत लोगो क्रो और भी

बुरा मालूम द्ोने श्गा को खूनी कानून को मानते थे। उसमे ऐसे

भी कई निकलते जो यह फदापि वर्दाश्त नहीं कर सकते समभौता हो जाय, बल्कि अगर वह हो रहा हो तो चाहते कि वह अ्रसफत्न हो जाय ।ट्रान्सवाल मेंबहुत कम पठात

थे। मेरा खयाल हैकि सब मिक्ञकर ५० से अधिक न होगे ! उनमें से अधिकाँशा लड़ाई केसमय सिपाही वनकर भवे

और जिस प्रकार युद्ध केलिए आये हुए गोरे वहीं वस गये। ठीक उसी प्रकार पठान और अन्य कितने ही भारतीय भी वहा

रह गये |इनमें से कई मेरे मवक्किल थे | यों वोऔर भी. अर

प्रकार सेमैंउन ज्ञोगों कोअच्छी तरह जानता था । वे बढ़े भोले होते हैं|बहादुर तो अवश्य दी हैं | मारना-मरना

लिए एक साधारण बात है। जब वे किसीसे बिगढ़ जाते केव

उसे पीट देते-अथवा उन्हींकी भाषा मेंकहना चाहेवो उसकी पीठ

खूब गर्म कर देते हैं, और कभी-कभी तो जान से भी मार डाह्ते हैं;इसमें उनका फोई दुष्ट हेतु नहीं होता। सगे के साथ भी वे इसी प्रकार का बर्ताव करते हैं । वहाँ यद्यपि

पठान इतनी कम वादाद में रहते थे, तथापि जब कभी उनमें

मंगढ़ा द्वोजाता हैतब वे अक्सर मार-पीट कर बैठते थे ।

बार ऐसे भंगड़ों में पडकर उन्हें मुझे निवटाना पढ़ा है| विश्वार्सघात की बात सुनते ही अपना गुस्सा रोकता उनके लिए

असम्भव हो जात है। न्याय प्राप्त करने के ज्िण सबसे बढ़िया उपाय उनके पास मारपीट दी हैं।पठान लोग इस युद्ध में काफी भाग ज्षेते थे ।उनमें सेएक भी आंदुसी नेइसकानून फे आगे

सिर नहीं सुकाया था। उनको बहकाना एक आसान बात थी।

दस अँगुलियोंवालो बात के विषय में उनमें गलतक्दमी का होना