पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२४२

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'शरे७

समभौते का विरोध--सुझपर हमला

शक ऐसी बात हैजो किसी भी आदसी की समम में आ सकती है।उन्हें उसबात परउकसाना ज़रा भी मुश्कित्त नहीं था |

पठानों के दिल्ल मेंसन्देह पेंदा करने केज्ञिण यह कह देना काफी

था कि अगर मैंने रिश्वत नहीं ली हैतो क्यों मेंदसों अंगुल्षियों

की छाप देने को बात कहता ? इसके अलावा एक दूसरा पक्ष

भी ट्रान्सवाल में था । इसमें दो प्रकार के ज्ञोग थे, एक तो बे जो ट्रान्सवाल मेंविना परवाना लिये शुप्त रूप से आये हुए थे।

और दूसरे वे जिन्होंने उनकी सद्दायता की या स्वयं अपनी ओर

से लाये ये। इस पक्त का स्वार्थ इसी बात में था किसमभौता न

हो। जबतक यद्ध चक्षता हो तबतक फिसीको परवाने दिखाने कोई मतलव नहीं था !इसलिए यह पक्त तबतक अपना व्यवहार

निर्भयरूप से चला सकवा था |और युद्ध के वन्द्‌ होने तक तो

यह पक्ष अपने को जेज् सेभीबचा सकता था । अर्थात्‌ इनके लिए जितनी लड़ाई अधिक चलती उतना ही भत्ञा था। इसलिए ये.ज्ञोग'भो पठानों कोसममौते के खिलाफ उत्तेजित कर सकते ये। अब पाठक समम सकते हैं. किपठान लोग एकाएक इंस

पकार क्यों उत्तेज्ञित हो गये ?

72005 पर*इस श्राधीरात के उद्‌गारों काअसर सभा पर बिल्कुश

नहीं हुआ। मैंने सभा सेसमझौते पर मत देने के लिए कहा | सभापति और दूसरे खांस-खास'लोग तो हृदू थे। इस संबाद के बाद सभापति ने एक भाषण किया जिसमें उन्होंने समभीते को

स्पष्टठया फिर समझाया और उसको संजूर करने के लिए जंनतों से कद्दा ।फिर सभा का मत लिया ।' द्ो-चार पढानों? को- छोड़ कर (जो उस/समय उपस्थित थे )सबने समझौतेकोमंजूर कर

लिया | मैंरांतके २-३ बजे घर पहुँचा | सोने के 'लिए 'तो संभेय'

डी.कहों था ! क्योंकि 'मुझे सुबह जल्दी' उठकर दूसरे साथियों