पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२४५

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दकच्तिण भ्रफ्नीषा का सत्याग्रह

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समाम कार्मो मेंवह मेरी मज्ञाह लेता था । कितने हो पठान

ट्रान्सवाज्ञ मेंघास और याक्षों फेगे घनवानें का काम फरते थे। उसमे ये अच्छा फायदा उठाते थे । मजदूरों से थे गदे बनवा लैंते भौर काफी नफा शेफर बेंच देते थे। मीर आलम भी यही काम करता था| पह छः फुट से अधिक ऊँचा जवान था |

शरीर भी दुद्देरा था।आज मैंने समीर आलम को पहले पहल ही आफिम फे बाहर इस प्रकार सड़ा हुआ देग्या । वह अक्सर

अन्दर जाकर बेठ जाया फरता था। इमारी 'भोाँखें मिली) पर उसने आजम पहली ही मतेवा सलाम नहीं किया । मेरे सशाम

करने पर उसने भी क्रिया | अपने रिवाज के अनुसार मैंने पूछा

“कैसे हो १” मुझे अधूरी-सो याद है किउसने उत्तर में कहा

४ अच्छा हूँ।” पर आज उमका चेहरा हमेशा की तरद प्रसन्न नहीं था । मैंने यह देखा और अपने दिल मेंमोट कर लिया! उसी समय यह,भी सोच लिया कि आज्न ,जरूर कुछ गोलमाल है। मेंआफिस के अन्दर घुसा । शीघ्र दी ईसप मियां औरअन्य

मित्र भी आ पहुँचे और हम एशियाटिक आफिस फी ओर

खाना हुए। मीर आक्षम ओर उसके साथी पीछे-पीछे हो

लिये । मेरेआफिस से एशियाटिक आफिसवाला मकान एक सील,से भी कम फासत्े पर था ।, वह -एक विशाल मेंदान में था। वहाँ आते हुए हमें एक बड़ो सड़क पर होकर जाना पढ़ता था। आफिस पाँच कदम रहा होगा क्ि,मीर आलम मेरी बगल

में आ पहुँचा और उसने पूछा--कहाँ जा रहेदो ९! मैंने उत्तर

दिया--“दस श्रँगुलियों की छाप देकर पस्ताना निकलवाना चाहता हूँ;अगर तुम भी चलोगे तो तुम्हेंअँगुलियों को छाप ,नहीं 'देना

होगी। तुम्दारापरवाना पहले निकल्वाकर फिर बाद को मेंअपनी अँगुक्षियों कीछाप देकर मेरा परवाना,निकलवाऊँगा ।” था मैं