पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२५१

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दतिण प्रफ्तीकाफासत्याग्रह

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की दिल्त ही मेंमेंनेउनसे ज्षमा माँग ली । उस दिन से दम बड़े मित्र बन गए। युद्ध सम्बन्धी तमाम समाचारों से आपने श्पने को परिचित बताया और कह्दा इस युद्ध «में शाप मुझे 'अपना

मित्र सममिए ।मुझसे जो कुछ सेवा बनेगी बढ़ सत्र मैं श्रपना घममं समझ कर फरने की इच्चा रखता हूँ। ईसा के जोवनादर्श

का 'चिंतन-मनन करके मेंनेतो यहों सोखा-है कि आपकात में दीन-दुखियों का साथ देना चाहिए । यह हमार पहला परिचय था। इसके बाद दिनोंदिन हमारा स्नेड-सम्नन्ध बढ़ता

हीगया |पाठक इस इतिद्दाम मेंहोक का साम आगे भी फई स्थानों पर पढ़ेंगे। पर ढोक-कुटुस्म ने मेरी जो सेवा की, उसका

वर्णन 'करने से. पहले उनका थोड़ा बहुत परिचय देदेना मो आवश्यक था | रात हो या दिन फोई न कोई मेरे पास जरूर

बैठा रहता या। जबतक मैंउनके घर में रह तबतक उनका

' सकान केवल एक धमंशाला ही बल गया था । श घम

फेरीवाले लोग भी थे। उनके कपड़े मदूरों के जेसे और मेंते भी रहते। उतके साथ में एक गठरी या टोकरी भी अवश्य

रहती ।जूतों पर सेर भर धूल भी |सि० डोझ के मकान पर ऐसे

ज्षोगों से लगाकर अध्यत्त तक के सभी दरजे के लोगों की एश भोढ़ लगी रहती। सब मेरा हाज्ञ पूछने और टाक्टर की आज्ञा! मिलने पर मुमे मिक्षने के ज्िए चले आते । सभो को वे समार

भाव से और सम्मानपू्थंक अपने दीवानलाने में बैठाते और

जबतफ में उनके यहाँ रहा तबतक उन्तका सारा समय मेर

शुश्रषा मेंऔर मुझ से मिलने के लिए आतेवाले सेकड़ों सब्जन

के आदर सत्कार ही मेंजाता । रात को भी दो-तीन वार मि

डोऊ चुपचाप मेरे कमरे मेंआकर जहूर देख जाते । उनके घर पर मुझे एक दिन भो ऐसा खयाज्ष नहीं हुआ कि यह मेरा घ