पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२५३

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दक्षिण अ्रप्तीका का सत्याग्रद

श्ा८

घमं सममाकर ही इसमें भाग ले रहा हैँ। पर भसत् वात यह

है कि मैंने हमारे गिरजा के दीन के साथ वातचीव करके भी

इस बात का खुलासा कर लिया है। मैंनेउन्हें यद रपट कह दिया हैकि अगर मेरा भारतीयों सेसम्बन्ध रखना आपको पसन्द न हो वो आप खुशी से मुमे रुत्मत देसकते हैं,और दूसरा पादरी तलाश कर सकते हैं।पर उन्होंने इस विषय में मुझे विश्कुत

निश्चिन्त कर दिया है, बल्कि और उत्साहित किया है। आपको यह कदापि नहीं समम लेना चाहिए क्रि सभी गोरे

तरफ एफसी तिरस्कार की नज़र से ही देखते हैं। आप नहीं जानते कि अग्रत्यज्ञ रूप सेआपके विषय में वेकितता सदुाव

रखते हैं। इसे तो मैं हीजान सकता हूँऔर आपको भी यह

बुधृत्त फरमा होगा ।“इतनी स्पष्ट वातचीत होने पर फिर मैंनेइस

नाजुक विषय पर कभी वातचीत नहीं छेढ़ी। इसके कुछ सात

बाद २० डोक रोडेशिया मेंअपने घर्म की सेवा करते हुए खर्ग-

वासी हो गये । तव हमारा युद्ध समाप्त नहीं हुआ था । उनकी

मृत्यु केसमाचार प्राप्त होते परउन्तके पंथवाल्ों नेअपने गिरजा घर मेंएक सभा निमन्त्रित कीथी | उसमें काछतिया तथा अन्य

भारतीयों के साथ-साथ मुझे भी बुल्ञाया गया था । मुमे वहाँ मापण भी देना पड़ा था अच्छी तरह चलने-फिरने लायक़ होने में मुके करीब दस

ग्यारह दिन छगे होंगे। ऐसी स्थिति होते हो मैंने इस प्रेमी बुटुग्व से दिदा माँगी |वह वियोग हम दोनों के लिए बडा

दुःखदायी था।