पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२५९

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दत्तिय श्रफ्ीका का सत्याग्रह

श्श््ड

परिचय भोजन-गृहद मेंहुआ। वह ट्रान्तवाल के "क्रिटिक के

उप-सम्पादक की जगह छोड़कर इंडियन ओपीनियन! में भाये थे। सब कोई जानते हैं कि उन्होंने युद्ध (सत्याम्रह) के लिए

इग्लैंड और सारे भारतवर्ष मेंभ्रमण किया था। रिच वि्ञायत

गये क्ि मैंने उन्हें फिनिक्स मेंअपने दफ्तर में तुल्ञा लिया | वहां

आर्टिकक्स दिये और येभी वकील बन गये | वाद मेंउन्‍्द्ोंने शादी की । मिसेज पोलक को भी भारतवर्ष जानता है। इस महिला ने भी अपने पति की युद्ध के काम मेंवढ़ी सहायता की थी। एक दिन भो उसमें विध्न नहीं ढाला |और यद्यपि आज वे दोनों असहयोग में हमारा साथ नहीं देरहेहैं,दथापि चद यथाशक्ति भारत

फी सेवा अब भी किया ही करते हैं।

अब हर्सन कैम वेक कापरिचय सुनिए। इनसे भी मेरा

परिचय युद्ध के पहले द्वीहुआ था। वह जर्मन हैं। और यदि लम॑न-अंप्रेजोका युद्ध नहुआ होता दो वह आज भारत मेंहोते।

उनका हृदय विशाल है। वह बेहद भोज्े हैं।उनकी भावनायें बढ़ी तीम्र हैं।वह शिल्प का घंधा करते हैं। ऐसा एक भी काम नहीं

कि जिसे करते हुए उन्होंने ना-हां कीहो। जब मैंने जोहान्सवर्य से अपना घरबार उठा लिया, तब हस दोनों एक साथ द्वीरे

थे। मेरा खर्चा भी बही ही उठाते थे। घर दो खुद रन्‍्हींका था।

खाने वगेरा का खचे देने की बाद जब मेंनिकालता तव वह बहुत

चिदृ कर कहते कि उन्हें. फिजूल-खर्ची सेबचानेवात्षा वो मेंदी था और मुमे!मना करते। उनके इस कथन में कुछ सार अवश्य

था। पर गोरों के साथ मेरा जो व्यक्तिगत सस्वन्ध था, उसका

वर्णन यहाँ नहीं किया जा सकता | गोखले दक्तिण अफ्रोका

आये वब जोहान्सवर्ग मेंकेशनवैककेदेंगत्षे मेंहीठददराये गये ये। गोखले इस मकान से बढ़े प्रसन्न हुए। उनको पहुँचाने केलिए ु