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हु
गोरे सहायक
के विषय में उसके हृदय मेंशंक्रा उसन्न दोते ही बह स्वतन्त्रता-
पूर्वक मुकते वाद-विवाद करती |और जबतक मेंउप्तकी नोति के विषय मेंउसे कायल न कर देता तब्रतक उसे कभी सन््तोष नहीं
होता था। जब हम सब ज्ञोग गिरफ्तार हो गये और अगुआओं में सेलगभग अकेले काछलिया बाहर रद्द गये त्तव इस कुप्तारिफा
ने लाखों का हिसाब संभाला था। मिन्न-मिन्न प्रकृति के मनुष्यों
से काम लिया था। फाछलिया भो उस्ती का आध्रय लेवे, उप्तो
की सलाह लेते थे। हम लोगों के जेल मेंचल्लें जाने पर डोक ने “इण्हियन ओपीनियन! की जिम्सेदारी अपने हाथों में लो।पर
वह वृद्ध पुरुष भी 'इस्डियन ओपीनियन! के लिए लिखे हुए लेख मिस श्लेज्ञोन से पहले पास करा लेवे! और मुक्ेउन्हनि कहा
“अगर मिस श्लेज्ञीन नहीं होतीं तो में कह नहीं सकता कि अपने काम से मुझे खुद भी सन्तोष होता या नहीं। उसको
सहायता और सूचनाओं को सच्ची कोमत आकना बहुत मुश्किल
है।” और कई बार उसकी सूचनायें उचित हो होंगे यह समझकर मेंउन्हें मंजूर भी कर किया करता । पठान, पटेज्, गिरमि-
टिया, आदि सब जाति के ओर सभी उम्र के भारतोयों से वह
सदा घिरी हुईरहती थो। वेउत्तकी सलाद लेदे और पद जेत्ा
कहती वेसा ही करते। दक्षिण अफ्रीका में अक्घर गोरे ज्ञोग
भारतीयों के साथ एक द्वीढिब्बे मेंनहों बैठते | ट्रान्सवाल मेंतो
उनझो एक जगह बैठने की मनाई भी करते हैं।वहाँ तो यह भो
कानून था कि सत्याप्रद्दी तोसरे ही दर्जे मेंसफर करें। इतना होते हुए भी मिस शक्ेजीन जानवूक कर मारदीयों के उब्बे में बैठवीं और गा के साथ झगड़ा भी करतीं | मुझे भय था और श्लेजीन को भी इस बात को शंका थी कि वह कह्दों गिरफ्तार न हो जाय।
पर यद्यपि सरकार को उसकी शक्ति, उप्तका युद्ध-विषयक ज्ञान १७