पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दक्तिण अफ्रीका का सत्याग्रह

१६३

उस छा मेंमुहली के सामने क्या काला और क्या गोरा, कोई

नहीं टिक सकता । जबतक मेंदक्तिण अफ्रोका में था, तबतक

मेरी यह आदत थी कि बरसात केदिनों को छोड़करहमेशा मेदान

में हीसोता था ।उस नियम में इस समय परिवर्तव करने

लिए मेंतेयार नहीं था। इसलिए मेरी रक्षा केज्िए अरने आप

बने हुए इस दल नेमेरे विस्तर के आस-पास पहरा देना शुरू

किया । यद्यपि इस दत के साथ उन मेंमेने मज्ञाक क्रियाथा तथापि मुझे अवश्य स्वीकार करना चाहिए कि मेरे अन्दर कद दुर्बलता तो अवश्य थो, क्योंकि जब उप्त दत्त ने पदरा पेंना

शुरू किया तब मुझे कुछ अधिक निर्भयता मालूम हुई।ओऔर अपने दिल मेंयह भी सवाज्ञ पेदा हुआ कि यदि वे ज्ोग न

आते वो कया में इसी प्रकार निर्मम चित्त से यहाँ सो रहा होता ? मुझे यह भी आभास होता हैकि कहों जरा-सी आबाज

दोते ही मेंचौंक पढ़ता था । मेरा विश्वास है कि ईश्वर मेंमेरो*

अविचल श्रद्धा है। मेरी बुद्धि इसबात को भो बरसों से झुबूंग

करती आयी हैकि मनुष्य-जीवन मेंमौत एक बड़ा सारी परिवर्तन है। और वद्द जब कमी आधे हमेशा स्वागत करने लायक वस्तु

ही है। हृदय से मौत तथा अन्य भर्यों को दूर करने के लिए

मेंनेमह्दा प्रयत्व भी किये हैं,तथापि अपने जीवन में ऐसे कई प्रसंग मुमे याद आते हैं किजब मौत की भेद करने फे विचार

मात्र से मेरा हृदय उस प्रश्नार न उद्धज्ष सक्का, जेसा एक चिर-

वियोगी मित्र से भेंट के बिचार से उछल पढता है। इस प्रकार तलवान बनने के लिए मद्दाप्रयत्त करने पर भी

मनुष्य कई बार दुर्वक्ष दी चना रहता है; भौर बुद्धि से प्राप्तकिया हुआ ज्ञान प्रत्यक्ष अनुभव के समय उसके लिए बहुत उपयोगी नहीं साबित दोता |तिसपर मो जब उसे बाहरो आप्रत्र