पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म्र६७

और भी कई मीतरी कठिनाइयाँ

मिल ज्ञाता हैऔर जब वह उसको स्वीकार कर ज्षेता है,तब तो

“वह अपना अधिकांश आंतरिक बल भी खो बेठता है। सत्याप्रद्द को इस प्रकार के भय से हमेशा बचते रहना चाहिए ।

फिनिक्स मेंमेसे एक ही उद्योग किया। गलतफहमी दूर

करने के लिए खूब लिखना शुरू कर दिया। संपादक और “शंकाशील पाठक के बीच एक कल्पित संवाद लिख डाला । उसमें

“नितनी भी शंकायें और आक्षेप मेने सुने थे उन सबका उत्तर

-मुझसे जितना विस्तारपूर्वक हो सका, दिया। भेरा खयात्त हैकि इसका असर भी अच्छा हुआ । यह तो अत्यक्ष सिद्ध हो गया

फि उन लोगों में गलतफहमी नही फैलाने पायी, जिनमें अगर बह "फैल जाती तो उसका परिणाम बहुत्त बुरा दोता। समभौते को मानना न मानना तो केवल ट्रान्सवाज के भारतीयों का काम -था | इसलिए उनके कार्यों परसेउनकी और उनके नेता एवं सेवक की हैसियत से मेरी भी सच्ची परीक्षा होने वाली थी। ऐसे

बहुत थोड़े भारतीय होंगे कि जिन्होंने स्वेच्छापूषंक परपाने न

लिये हों ।एशियाटिक आफिस मेंपरवाना लेने के लिए इतने आदमी जाते कि परवाना देनेवाज्लों को दस मारने तक का समय

नहीं मिलता था। कौम न बढ़ी ही तेजी और तत्परता से उन

सब शर्तों का पालन करके दिखा दिया जो समझौते में व्यक्तियों "से सस्वन्ध रखती |सरकार को भी यह बात स्वीकार फरनी

पड़ी थी। मेंने यद् भी देखा कि ययपि गलतफहसी न उम्र रूप

घारण फर लिया था, फिर भी उसका क्षेत्र बहुत ही मर्यादित “था । जब कितने द्वीपठानों ने कानून फो अपने हाथों मेंके लेकर

उपद्रव मचाना शुरू किया तत्र तो बड़ी ही खत्बज्ञी मच गयी।

पर इस खत़बली का भी जब सुत्मम अवज्ञोकन करने लगते हैं,

'सब यही मालूम होता हैकि उसका न सिर होता है न पैर। ६