पृष्ठ:दक्षिण अफ्रीका का सत्याग्रह Satyagraha in South Africa.pdf/२७३

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दक्तिण अप्लीका का सत्याग्रह

प्ष्ठ-

कई बार वह केवल क्षणिक ही होती है। फिर भी आज

भी संसार से वह एक शक्ति तो हैही क्‍योंकि खून-खराबी से हमः अभीतक कॉप उठते हैं। पर यदि शाति के साथ विचार किया

जाय तो मालूम होगा कि कापने काकोई कारण ही नहीं है।

मान लीजिए कि मीर आत्म और उसके साथियों की मार से केवल मेरा शरीर धायल्ष होने के बदलते प्राण ही निकल जाते, यह

भो सान लीजए कि कौम भी वुद्धिपूषंक शात और निश्चिल्त रही होती, मीर आज्ञम अपनो बुद्धि केअनुसार और छुछ नहीं कर सकता था यह सोचकर उसके प्रति क्षमाभाव और-मिन्र भाव भी रक्‍्खा होता, तो इससे कोम को कोई द्वानि नहीं उठानी

पड़ती, बल्कि अत्यन्त ज्ञाभ ही होता, क्योंकि फौम मेंतो गलतफहमी थी द्वीनहीं। इसलिए वह तो दूने उत्साह सेअपनी

प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहती और अपने कतंव्य का पालन करती रदती | और मुझ तो केवल लाभ ही लाभ होता, क्योंकि सत्याप्रही केलिए अपने सत्य पर दृढ़ रहते हुए अनायास मृत्यु प्राप्त

करने से बढ़कर दूसरा मग्न-प्रसग संसार मेंऔर कौन हो सकता

है९ उपयुक्त दलीलें सत्याप्रद जेसे युद्ध ही के विषय में सत्य हैं, क्योंकि उसमें बेर-भाव को स्थान द्वी नहों है। आत्मशाक्ति या स्वावलबन द्वीउमका एक मात्र साधन है। उसमें क्िसीको भी

दूसरे का मुँद्द ताकते हुए बेंठेनहीं रहना पड़ता! बह्ाँ न कोई-

नेता हैऔर न कोई सेवक । सभी सेवक और सभी नेता हैं।' इसलिए किसी की मृत्यु फिर वह कितने द्वीबढ़े मनुष्य की क्यों न

हो उस युद्ध को द्वानि नहीं पहुँचा सकती। यद्दी नद्दी, बल्कि उससे तो सत्याप्रद्दियों को युद्ध मेंनबीन शक्ति मित्रती है।

यही सत्याग्रह का एक मूल और शुद्ध स्वरूप है। पर

व्यवद्वार मेंहमें यह देखने को नहीं मिलता, क्योंकि सभी मे बेरः